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________________ कोई नहीं जानता यदि तुम 'पिता' शब्द को लो, तो मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। एक आर्यसमाजी-हिंदू धर्म के एक नए, कट्टर और जड़ संप्रदाय का व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा, 'मैंने आपको - कई बार जीसस के बारे में बोलते सुना है। क्या आप ईसाई हैं? मैंने कहा, 'एक तरह से, हूं।' निश्चित ही वह उलझन में पड़ गया। वह समझ नहीं सका-एक तरह से को वह कहने लगा, 'मैं प्रमाणित कर सकता हूं कि आपके जीसस एकदम गलत हैं। वे कहते हैं, मेरे पिता आकाश में है तो फिर मां कौन है?' अब इस तरह से बिगड़ सकते हैं शाब्दिक प्रतीकों के अर्थ – मां कौन है? बिना मां के पिता कैसे हो सकते हैं? बिलकुल ठीक है बात बड़ी सीधी-साफ मालूम पड़ती है। तुम जीसस की बात का आसानी से खंडन कर सकते हो। और फिर ईसाई भयभीत हैं, क्योंकि वे कहते हैं, ईश्वर पिता है, तो उन्हें स्पष्ट करना पड़ता है कि जीसस उसके इकलौते बेटे हैं, क्योंकि अगर हर कोई बेटा है तब तो सारा महत्व ही समाप्त हो गया। तो जीसस की विशिष्टता और विलक्षणता क्या रही! तो वे उसके इकलौते बेटे हैं! अब चीजें बद से बदतर होती जाती हैं तो फिर और दूसरे लोग कौन हैं? सभी दोगले हैं? सारा संसार? केवल जीसस ही इकलौते बेटे है तो तुम कौन हो, तुम्हें क्या कहें? पोप हैं, ईसाई धर्म प्रचारक हैं, और जो संसार के तमाम लोग हैं, उन्हें क्या कहें? तब तो सारी दुनिया नाजायज हुई, बिना बाप की हुई । कोई नहीं जानता! तुम प्रतीक शब्दों को खींच सकते हो। एक जगह आती है जब पूरा अर्थ ही खो जाता है। इतना ही नहीं, यह ऐसा मूढ़तापूर्ण चित्र खींच देता है कि कोई भी मजाक उड़ा देगा। इसलिए धर्म को केवल गहरी सहानुभूति में ही समझा जा सकता है। यदि तुम में सहानुभूति हैं तो तुम उसे समझोगे; यदि तुम में सहानुभूति नहीं है तो तुम उसे गलत ही समझ सकते हो क्योंकि पूरी बात ही प्रतीककथाओं में है। प्रतीक कथाओं को समझने के लिए भाषा की समझ ही काफी नहीं है, व्याकरण की - समझ ही काफी नहीं है, क्योंकि प्रतीक कुछ ऐसी बात है जो भाषा और व्याकरण से परे है। यदि तुम बहुत सहानुभूतिपूर्वक समझो, केवल तभी एक संभावना है कि तुम अर्थ समझ सको । प्रतीक- कथा कोई प्रमाण नहीं है। वह तो बस एक विधि है उसका संकेत देने के लिए जिसे बताया नहीं जा सकता - उन चीजों को दिखाने की एक कोशिश है जिन्हें कहा नहीं जा सकता। इसे हमेशा याद रखना, अन्यथा तुम अपनी ही चालाकी में फंस जाओगे। दूसरा प्रश्न:
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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