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________________ और किसी शाब्दिक प्रतीक को मत पकड़ लेना। शाब्दिक प्रतीक सदा एक संकेत होते हैं; तुम्हें उन्हें जोर से नहीं पकड़ लेना है। छलांग' का अर्थ यहां छलांग नहीं है; 'ऊर्ध्वगमन' का अर्थ ऊपर जाना नहीं है, 'अधोगमन' का अर्थ नीचे जाना नहीं है। ये संकेत हैं; शब्दों को मत पकड़ो। सुगंध ले लो और फूल को भूल जाओ, वरना तो तुम मुझे गलत ही समझते रहोगे। और ऐसा ही हुआ है बहुत बार, लाखों बार, सभी धार्मिक लोगों के साथ यही होता रहा है। क्योंकि वे प्रतीकात्मक संकेतों में बोलते हैं। बोलने का दूसरा कोई उपाय भी नहीं है। वे बोलते हैं प्रतीकों में, प्रतीक-कथाओं में। और फिर तुम प्रतीक-कथाओं को मढ़ता की सीमा तक खींच सकते हो। यदि तुम प्रतीकों को खींचे जाओ, तो एक जगह आती है, जहां सारी बात खो जाती है और हर चीज एक मूढ़ता मालूम पड़ने लगती है। इसीलिए अज्ञानियों के हाथ में सारे धर्म मढ़ता बन जाते हैं। सारी तरकीब यही है कि तुम प्रतीकों को खींचे चले जाओ-एक जगह आ जाती है जहां कि वे फिर तर्कसंगत नहीं रहते, अर्थपूर्ण नहीं रहते। उदाहरण के लिए, जीसस कहते हैं, 'मेरे पिता जो ऊपर आकाश में हैं।' अब इस 'ऊपर' का अर्थ ऊपर नहीं है।'मेरे पिता' का अर्थ मेरे पिता से नहीं है, क्योंकि इसमें कोई 'मेरा' हो नहीं सकता।' जो ऊपर आकाश में हैं। अब तुम बड़ी आसानी से पूरा अर्थ बिगाड़ सकते हो। जब ईसाई मित्र ही इसे बिगाड़ देते हैं, फिर विरोधी तो बिगाड़ेंगे ही। वे प्रार्थना करते हैं ऊपर देखते हुए। यह मूढ़ता है, क्योंकि वास्तव में अस्तित्व में न तो कुछ ऊपर है और न कुछ नीचे है। यदि तुम अस्तित्व को उसकी समग्रता में लो, तो ऊपर क्या और नीचे क्या? न कोई चीज ऊपर हो सकती है और न कोई चीज नीचे हो सकती है-ये सापेक्ष परिभाषाएं हैं य 'पिता' शब्द को लो, तो मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। एक आर्यसमाजी-हिंदू धर्म के एक नए, कट्टर और जड़ संप्रदाय का व्यक्ति-मेरे पास आया और कहने लगा, 'मैंने आपको कई बार जीसस के बारे में बोलते सना है। क्या आप ईसाई हैं? मैंने कहा, 'एक से, हं।' निश्चित ही वह उलझन में पड़ गया। वह समझ नहीं सका-'एक तरह से' को। वह कहने लगा, 'मैं प्रमाणित कर सकता हैं कि आपके जीसस एकदम गलत हैं। वे कहते हैं, मेरे पिता आकाश में हैतो फिर मां कौन है?' अब इस तरह से बिगड़ सकते हैं शाब्दिक प्रतीकों के अर्थ -मां कौन है? बिना मां के पिता कैसे हो सकते हैं? बिलकुल ठीक है। बात बड़ी सीधी-साफ मालूम पड़ती है। तुम जीसस की बात का आसानी से खंडन कर सकते हो। और फिर ईसाई भयभीत हैं, क्योंकि वे कहते हैं, 'ईश्वर पिता है, तो उन्हें स्पष्ट करना पड़ता है कि जीसस उसके इकलौते बेटे हैं, क्योंकि अगर हर कोई बेटा है तब तो सारा महत्व ही समाप्त हो गया। तो जीसस की विशिष्टता और विलक्षणता क्या रही! तो वे उसके इकलौते बेटे हैं! अब चीजें बद से बदतर होती जाती हैं। तो फिर और दूसरे लोग कौन हैं? सभी दोगले हैं? सारा संसार? केवल जीसस ही इकलौते बेटे है तो तुम कौन हो, तुम्हें क्या कहें? पोप हैं, ईसाई धर्म-प्रचारक हैं, और जो संसार के तमाम लोग हैं, उन्हें क्या कहें? तब तो सारी दुनिया नाजायज हुई, बिना बाप की हुई।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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