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________________ अज्ञान की अवस्था ही कारण है सारी भ्रांतियों का, सारे भ्रमों का, सभी मिथ्या प्रतीतियों का। लेकिन ज्यादा जानना ज्ञान की अवस्था नहीं है। अज्ञान कारण है, लेकिन ज्ञान-जानकारी के अर्थ में कोई उपाय नहीं है। तुम ज्यादा से ज्यादा जान सकते हो, लेकिन तुम वही रहते हो। ज्ञान एक व्यसन बन जाता है। तुम उसे इकट्ठा करते चले जाते हो, लेकिन जो इकट्ठा कर रहा है वह वही का वही बना रहता है। तुम ज्यादा जानते हो, लेकिन 'तुम' ज्यादा होते नहीं। और अज्ञान का मूल कारण केवल तभी मिट सकता है जब तुम विकसित होओ, जब तुम्हारा होना मजबूत हो, जब तुम्हारी स्व-सत्ता जागे। सारी पीड़ा का मूल कारण अज्ञान है, लेकिन तथाकथित ज्ञान उपचार नहीं है-जागरण है उपचार। यदि तुम इस सूक्ष्म भेद को नहीं समझते, तो पहले तो तुम अज्ञान में खोए हो, फिर तुम ज्ञान में खो जाओगे-और कुछ ज्यादा ही खो जाओगे। उपनिषदों में सर्वाधिक क्रांतिकारी वचनों में से एक वचन है। वह वचन यह है कि अज्ञान में तो लोग भटकते ही हैं, लेकिन ज्ञान में वे और भी गहरे अर्थों में भटक जाते हैं। अज्ञान तो भटकाता ही है, ज्ञान और भी ज्यादा भटका देता है। तो अज्ञान ज्ञान का अभाव नहीं है। यदि वह ज्ञान का अभाव होता तो चीजें बहुत आसान होती-और सस्ती होतीं। तुम ज्ञान उधार ले सकते हो; तुम स्वयं का होना उधार नहीं ले सकते। ज्ञान तो तुम चुरा भी सकते हो; तुम स्व-सत्ता को नहीं चुरा सकते। तुम्हें उसमें विकसित होना होता है। इस बात को कसौटी की तरह याद रखना : जब तक तुम किसी चीज को स्वयं के भीतर विकसित नहीं करते, तब तक वह तुम्हारी कभी नहीं होती। जब तुम भीतर विकसित होते हो, केवल तभी कोई चीज तुम्हारी होती है। तुम किसी चीज पर मालकियत कर सकते हो, लेकिन उस मालकियत से भांति में मत पड़ जाना। वह चीज तुमसे अलग ही बनी रहती है, वह तुम से छीनी जा सकती है। केवल तुम्हारी अंतस सत्ता नहीं छीनी जा सकती तुम से। तो जब तक तुम्हारी अंतस सत्ता में ही ज्ञान न घट जाए, अज्ञान नहीं मिट सकता। अज्ञान ज्ञान का अभाव नहीं है; अज्ञान है होश का अभाव। अज्ञान एक प्रकार की निद्रा है, एक प्रकार की मूर्छा है, एक प्रकार का सम्मोहन है; जैसे कि तुम नींद में चल रहे हो, नींद में काम कर रहे हो। तुम नहीं जानते कि तुम क्या कर रहे हो। तुम आलोकित नहीं हो; तुम्हारा सारा अस्तित्व अंधकार में डूबा है। तुम जान सकते हो प्रकाश के विषय में, लेकिन प्रकाश के विषय में वह ज्ञान कभी प्रकाश न बनेगा। उलटे, वह एक अवरोध बन जाएगा प्रकाश की ओर गति करने में, क्योंकि जब तुम बहुत कुछ जान लेते हो प्रकाश के संबंध में तो तुम भूल जाते हो कि प्रकाश घटित नहीं हुआ है तुम्हें। तुम अपने ही ज्ञान दवारा धोखा खा जाते हो।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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