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________________ अभी यदि मैं तुमसे कहूं कि बंदर के विचार पर एकाग्र होओ; केवल कोशिश करो कि बंदर का विचार मन में रहे, बस बंदर का चित्र खयाल में रहे और कुछ नही तो बहुत कठिन होगा तुम्हारे लिए। हजारों दूसरे खयाल आएंगे। असल में, बंदर को छोड़ कर न जाने क्या-क्या स्मरण आएगा; बंदर बार-बार खो जाएगा। बड़ा कठिन है मन के लिए किसी चीज पर एकाग्र रहना। म संकुचित है। वह किसी चीज के साथ कुछ क्षणों के लिए ही रह सकता है, फिर वह उससे हट जाता है। वह विराट नहीं है; वह लंबे समय तक नहीं रह सकता किसी एक चीज पर न ठहरना मनुष्यता की गहरी समस्याओं में से एक है। तुम किसी स्त्री या किसी पुरुष के प्रेम पड़ते हो। फिर अगले दिन मन किसी दूसरे पर आने लगता है! एक दिन का साथ, और अधिक दूखी लगते हो। तुम्हारा मन हटने लगता है। तुम एक ही व्यक्ति के साथ बहुत समय तक प्रेम में नहीं रह सकते, कुछ घंटे रहना भी भारी हो जाता है। तुम्हारा मन न जाने कहां-कहां चक्कर काटता रहता है। तुम बहुत दिनों से कार के लिए परेशान थे। तुमने श्रम किया, संघर्ष किया; किसी भांति तुम सफल हो गए कार लाने में। अब कार खड़ी है तुम्हारे पोर्च में लेकिन बात खतम हो गई। अब मन फिर कहीं और भटक रहा है पड़ोसी की कार। और यही होगा उस कार के साथ भी। यही हमेशा से हो रहा है. तुम कहीं रुक नहीं सकते। यदि तुम पहुंच भी जाते हो अपने लक्ष्य तक, तो जल्दी ही तुम वहां से हट जाते हो। धारणा का अर्थ है धारण करने की क्षमता। क्योंकि यदि तुम परमात्मा को जानना चाहते हो, तो तुम्हें उसे धारण करने की क्षमता जुटानी होगी। यदि तुम अपने अंतरस्थ केंद्र को जानना चाहते हो, तो तुम्हें उसके लिए गर्भ होने की क्षमता निर्मित करनी होगी। तुम्हें पुन: जन्म देना होगा स्वयं को। एकाग्रता तो केवल उसका एक हिस्सा है। धारणा बहुत विराट शब्द है, वह बहुत व्यापक शब्द है। वह एकाग्रता से बहुत विराट है; एकाग्रता तो केवल उसका एक हिस्सा है। 'और तब मन धारणा के योग्य हो जाता है।' मैं इसका अनुवाद करूंगा: 'और तब मन एक गर्भ हो जाता है। और जब मैं कहता हूं 'गर्भ', तो मेरा मतलब है. स्त्री बच्चे को नौ महीने अपने भीतर धारण करती है; वह उसे बीज की भांति सम्हालती है। हिंदुओं ने स्त्री को पृथ्वी कहा है, क्योंकि वह बच्चे को धारण करती है-बच्चे के बीज को, जैसे पथ्वी वृक्ष के बीज को महीनों तक धारण करती है। जब बीज भूमि के साथ एक हो जाता है; सारा भय छोड़ देता है; पृथ्वी के प्रति अजनबी नहीं रहता; निश्चित अनुभव करने लगता है। ध्यान रहे, बीज को पहले निश्चित होना चाहिए, केवल तभी खोल टूटती है; अन्यथा तो खोल कभी टूटेगी नहीं। जब बीज को लगता है कि यह पृथ्वी मां जैसी है-फिर स्वयं की सुरक्षा करने की कोई जरूरत नहीं रहती, अपने चारों ओर खोल का कवच बनाए रखने की कोई जरूरत नहीं रहती-वह
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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