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________________ बहुत से योगी है जो पांचवें पर रुक गए है। फिर वे समझ नहीं पाते कि क्या रहा है।' अब कोई अवरोध भी नहीं है वह अतृप्त है तृप्त नहीं हैं। असल में यदि तुम बहुत अहंकारी हो तो तुम इसी सूत्र पर ठहर जाओगे। अगर अवरोध हो तो अहंकार के पास कुछ लड़ने के लिए होता है। आवरण हो, तो तुम उसे हटाने की, उठाने की कोशिश करते रहते हो। जब वह हट जाता है, तो लड़ने के लिए कुछ नहीं रहता। जैसे कि तुम जिस चीज से संघर्ष कर रहे थे, वह अचानक खो जाए-तुम्हारे जीवन का सारा अर्थ उसके साथ खो जाता है। अब तुम नहीं जानते कि क्या करें। ऐसे लोग हैं संसार में जो दूसरों के साथ एक गहरी प्रतियोगिता में उलझे हैं-व्यापार में, राजनीति में, इधर-उधर की बातों में। फिर वे थक जाते हैं। अगर वे थोड़े भी बुद्धिमान हैं, तो वे थक ही जाएंगे। फिर वे अपने अहंकार से ही लड़ने लगते हैं, जो कि एक आवरण है। एक दिन वह आवरण भी हट जाता है, तब लड़ने के लिए, संघर्ष करने के लिए कुछ बचता नहीं। जब संघर्ष करने के लिए कुछ नहीं बचता, तो अहंकार के लिए इंच भर भी सरकना असंभव हो जाता है, क्योंकि अहंकार का पूरा प्रशिक्षण ही किसी न किसी के साथ संघर्ष में रहना है-या तो दूसरे के साथ या फिर अपने अहंकार के साथ ही, लेकिन संघर्ष जरूरी है। जब लड़ने के लिए, संघर्ष करने के लिए कुछ नहीं रहता, कोई बाधा नहीं रहती, तो तुम ठहर जाते हो। अब कहीं जाने के लिए कोई जगह नहीं रहती.. लेकिन तीन चरण अभी भी शेष हैं। धारणासु च योग्यता मनसः। और तब मन धारणा के योग्य हो जाता है। धारणा केवल एकाग्रता नहीं है। एकाग्रता में थोड़ी सी झलक है धारणा की, लेकिन धारणा एकाग्रता से बहुत बड़ी बात है। तो इसे ठीक से समझ लेना जरूरी है। भारतीय शब्द धर्म भी धारणा से आता है। धारणा का अर्थ होता है. धारण करने की क्षमता, गर्भ बनने की पात्रता। जब प्राणायाम के बाद तुम समग्र के साथ लयबद्ध हो जाते हो, तो तुम गर्भ बन जाते हो-धारण करने की विराट क्षमता बन जाते हो। तुम समाहित कर सकते हो समग्र को। तुम इतने विराट हो जाते हो कि सब कुछ समाहित कर सकते हो। लेकिन 'धारणा' का अनुवाद निरंतर 'एकाग्रता' की भांति क्यों किया जाता रहा है? क्योंकि इसमें एकाग्रता की थोड़ी झलक मिलती है। एकाग्रता क्या है? एक ही विचार के साथ लंबे समय तक बने रहना, एक ही विचार को लंबे समय तक धारण किए रहना एकाग्रता है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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