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________________ बहुत गहरी थी, कहीं कोई तरंग भी नहीं थी। लेकिन तुम्हें याद रहेगा और तुम कहोगे, 'मैं बड़ा आनंदित था।' लेकिन यदि तुम नींद में नहीं बल्कि ध्यान की गहरी अवस्था में उतर जाते हो-वे एक जैसी ही होती हैं, करीब-करीब मिलती-जुलती लगती हैं-तब तुम कोई बात याद नहीं रख पाओगे। क्योंकि जब तुम ध्यान की गहरी अवस्था में, 'थीटा' में उतरते हो, या कई बार तुम चौथी अवस्था में भी उतर सकते हो, 'डेल्टा' में, तो कहीं कोई स्मृति न होगी; क्योंकि तुम ऐसी गहराई में उतर रहे होते हो, जो मन का हिस्सा नहीं, कहीं ऐसी जगह गति कर रहे होते हो जहां स्मृति काम नहीं करती, कहीं अज्ञात पगडंडी पर चल रहे होते हो। तुम किसी बड़े राजपथ पर नहीं चल रहे होते, तुम अपने अचेतन अंतस के जंगल में चल रहे होते हो : अनजाना- अज्ञात मार्ग, कोई नक्शे नहीं, कोई सोच-विचार काम नहीं करता-कोई सिद्धात लागू नहीं होते वहां। तब तुम झटके के साथ वापस आओगे जैसे कि तुम कहीं खो गए थे। तुम फिर से बाहर के राजपथ पर लौट आओगे झटके के साथ, जहां कि मील के पत्थर लगे हैं और हर चीज साफ-सुथरी है और नक्शा पास में है और तुम समझ सकते हो कि तुम कहां हो। तुम नींद में नहीं उतर रहे हो, वरना तो तुम जान लोगे, क्योंकि तुम नींद को जानते हो। बहुत जन्मों से तुम नींद में उतरते रहे हो; तुम पूरी तरह परिचित हो इस घटना से। यदि तुम साठ साल जीते हो, तो बीस साल नींद में जाते हैं। यह कोई साधारण घटना नहीं है। साठ साल का जीवन, बीस साल नींद में जाते हैं. प्रतिदिन, तम्हारे समय का एक तिहाई हिस्सा नींद में जाता है। तुम जानते हो यह बात, तुम अच्छी तरह जानते हो इसे। और ऐसा केवल एक ही जन्म में नहीं है, लाखों-लाखों जन्मों से तुम सोते आ रहे हो, प्रत्येक जन्म के एक तिहाई हिस्से में तुम सोए रहे हो। असल में दूसरी और कोई क्रिया नहीं जो इतना समय लेती हो। कोई अन्य एक क्रिया इतना ज्यादा समय नहीं लेती है। न तो तुम प्रेम करते हो आठ घंटे, और न ही तुम भोजन करते हो आठ घंटे, और न ही तुम ध्यान करते हो आठ घंटे। नींद सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात है। कैसे तुम असहजता रह सकते हो इसके प्रति? हो सकता है कि कम सजग होओ, लेकिन तो भी तुम सजग हो-स्मृति काम करेगी। लेकिन तुम परिचित मार्ग से कहीं अनजानी राह में जा रहे हो, जहां कि तुम कभी गए नहीं हो। इसीलिए तुम झटके के साथ लौटते हो। कोई अज्ञात तुम्हारी अंतस सत्ता को छू रहा है। इसीलिए तुम निर्णय नहीं कर पा रहे हो कि 'मैं गहरे उतर रहा हूं या बस नींद में जा रहा हूं।' प्रसन्न होओ। यदि तुम निर्णय कर सकते, तो यह नींद होती, तो तुम पहचान लेते, तो यह नींद होती। यदि तुम नहीं पहचान पा रहे हो, तो कहीं पार का कुछ और भी तुम में और तुम कहीं अज्ञात को स्पर्श कर रहे हो।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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