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________________ जीवन से, और जब तुम मृत्यु से गुजरते हो, तो तुम्हें वह जीवन मिलेगा जिसका तुमसे या मुझ से या किसी से कोई लेना-देना नहीं है। यह समग्र का जीवन है। इसीलिए मृत्यु को देवता कहा है। एक पूरा उपनिषद है, कठोपनिषद वह पूरी कथा पूरा उपनिषद यही है कि एक छोटा बच्चा मृत्यु के पास जाता है - जीवन का रहस्य सीखने के लिए। असंगत लगती है बात, बिलकुल असंगत लगती है। जीवन का रहस्य सीखने के लिए मृत्यु के पास क्यों जाना? विरोधाभास मालूम पड़ता है, लेकिन सच्चाई यही है। यदि तुम जीवन को जानना चाहते हो वास्तविक जीवन को तो तुम्हें पूछना होगा मृत्यु से, क्योंकि जब तुम्हारा तथाकथित जीवन समाप्त होता है, केवल तभी वास्तविक जीवन सक्रिय होता है। 'आसन की सि‌द्धि के बाद का चरण है प्राणायाम। यह सिद्ध होता है श्वास और प्रश्वास पर कुंभक करने से....../ , तो जब तुम श्वास भीतर लेते हो, तो उसे थोड़ी देर रोकना, ताकि द्वार अनुभव किया जा सके। जब तुम श्वास बाहर छोड़ते हो, तो उसे थोड़ी देर बाहर रोकना, ताकि तुम ज्यादा आसानी से अनुभव कर सको उस शून्य अंतराल को तुम्हारे पास थोड़ा ज्यादा समय होता है। '... या अचानक श्वास को रोकने से।' या, कभी श्वास को अचानक रोक देना। रास्ते पर चलते हुए उसे रोक देना - स्व अचानक झटका, और मृत्यु प्रवेश कर जाती है। कभी भी, किसी भी समय तुम अचानक रोक सकते हो श्वास को, कहीं भीउसी श्वास के रुकने में मृत्यु प्रवेश कर जाती है। उपरोक्त प्राणायामों की अवधि और आवृत्ति देश काल और संख्या के अनुसार ज्यादा लंबी और सूक्ष्म होती जाती है। इन अंतरालों का जितना ज्यादा तुम अभ्यास करते हो, उतना ज्यादा विस्तीर्ण होता है द्वार; तुम उसे उतना ज्यादा अनुभव करने लगते हो। इसे हिस्सा बना लेना अपने जीवन का। जब भी तुम कुछ नहीं कर रहे हो, तो श्वास को भीतर लेना- रोक लेना। अनुभव करना उसे वहां वहीं कहीं द्वार है। वहां अंधेरा है; टटोलना होगा तुम्हें द्वार तुरंत ही नहीं मिल जाता है, तुम्हें टटोलना होगा लेकिन तुम पा लोगे। और जब भी तुम श्वास को रोकोगे, तुरंत ही विचार ठहर जाएंगे। प्रयोग करके देखना। अचानक रोक देना श्वास और तुरंत प्रवाह रुक जाता है और विचार ठहर जाते हैं, क्योंकि विचार और श्वास दोनों संबंधित हैं जीवन से इस तथाकथित जीवन से दूसरे जीवन में, दिव्य जीवन में, श्वास की जरूरत नहीं है। तुम जीते हो, श्वास की कोई जरूरत नहीं होती, तुम जीते हो, विचारों की कोई जरूरत नहीं
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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