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________________ उन घड़ियों में तुम्हारा मृत्यु से साक्षात्कार होता है, और मृत्यु से साक्षात्कार परमात्मा से साक्षात्कार है। मैं फिर से दोहरा दूं : मृत्यु से साक्षात्कार परमात्मा से साक्षात्कार है। क्योंकि जब तुम मिट जाते हो, परमात्मा अवतरित होता है तुम में। केवल सूली के बाद ही पुनर्जीवन होता है। इसीलिए मैं कहता हं : पतंजलि मरने की कला सिखा रहे हैं। जब श्वास ठहर जाती है; जब श्वास न बाहर जाती है न भीतर आती है, तब तुम ठीक उसी अवस्था में होते हो जहां तुम मृत्यु की घड़ी में होओगे। एक पल को तुम्हारा मृत्यु से साक्षात्कार हो जाता हैश्वास ठहर गई होती है। पूरा 'विज्ञान भैरव तंत्र' इस प्रक्रिया पर आधारित है, क्योंकि यदि तुम प्रवेश कर सको उस अंतराल में, तो वही द्वार है। लेकिन वह बहुत सूक्ष्म और संकरा है। जीसस ने बार-बार कहा है, 'मेरा मार्ग संकरा है-सीधा है, लेकिन संकरा है, बहुत संकरा है।' कबीर ने कहा है, 'दो नहीं गुजर सकते साथ-साथ, केवल एक ही गुजर सकता है।' इतना संकरा है मार्ग कि यदि तुम्हारे भीतर भीड़ है, तो तुम नहीं गुजर सकते। यदि तुम दो में भी बंटे हुए हो-बाएं और दाएं-तो भी तुम नहीं गुजर सकते। यदि तुम एक हो, एक समस्वरता, एक अखंडता, तो तुम गुजर सकते हो। संकरा है मार्ग। सीधा है, निश्चित ही; वह कोई आड़ा-तिरछा नहीं है। वह सीधा जाता है परमात्मा के मंदिर की तरफ, लेकिन बहत संकरा है। तुम अपने साथ किसी को नहीं ले जा सकते। तुम अपने साथ अपनी चीजें नहीं ले जा सकते। तुम अपना ज्ञान नहीं ले जा सकते। तुम अपना त्याग नहीं ले जा सकते। तुम अपनी प्रेमिका को नहीं ले जा सकते, अपने बच्चों को नहीं ले जा सकते। तुम किसी को नहीं ले जा सकते। असल में तुम अपना अहंकार भी नहीं ले जा सकते-स्वयं को भी नहीं ले जा सकते! 'तुम्हीं गुजरोगे वहां से, लेकिन तुम्हारे शुद्धतम अस्तित्व के अतिरिक्त बाकी हर चीज छोड़ देनी होती है दवार पर। हां, संकरा है मार्ग। सीधा है, लेकिन संकरा है। और यही क्षण हैं मार्ग को देख लेने के. जब श्वास भीतर जाती है और ठहर जाती है पल भर को; जब श्वास बाहर जाती है और ठहर जाती है पल भर को। इन अंतरालों के प्रति, इन क्षणों के प्रति औरऔर सजग होना। इन अंतरालों के द्वारा परमात्मा तुम में प्रवेश करता है मृत्यु की भांति। मझ से कोई कह रहा था, 'पश्चिम में हमारे पास यम के समानांतर कोई शब्द नहीं है-यम अर्थात मृत्यु का देवता।' और वह मुझ से पूछ रहा था, 'आप मृत्यु को देवता क्यों कहते हैं? मृत्यु तो दुश्मन है। मृत्यु को देवता क्यों कहा गया है? यदि मृत्यु को शैतान कहा जाए तो ठीक है। लेकिन आप इसे देवता क्यों कहते हैं?' मैंने कहा कि हम इसे बहुत सोच-समझ कर देवता कहते हैं. क्योंकि मृत्यु द्वार है परमात्मा का। असल में मृत्यु ज्यादा गहरी है जीवन की अपेक्षा–उस जीवन की अपेक्षा जिसे तुम जीवन जानते हो। वह जीवन नहीं जिसे मैं जानता हूं। तुम्हारी मृत्यु ज्यादा गहरी होती है तुम्हारे
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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