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________________ यह न जानते हुए कि यह वामपंथी हाथी है। लेकिन जब हाथी चला दक्षिणपंथियों के साथ तो वे बहुत नाराज हुए। यह हाथी तो उनके विरुद्ध था. उसे तो दाईं तरफ झुके रहना चाहिए। उन्होंने पुराने जूते, टमाटर, केले के छिलके, और तमाम सड़ी-गली चीजें फेंकनी शुरू कर दो। संक्षिप्त में कहा जाए, तो उन्होंने उसे वी. आई .पी. सत्कार दिया। वे बहुत क्रोधित थे। उन्हें उसके मालिक पर भी क्रोध आया, और उन्होंने मालिक से कहा, अगली बार जब हम इसे किराए पर लें, तो तुम ठीक इंतजाम करना। तो मालिक ने इंतजाम किया, क्योंकि उसकी रोटी-रोजी चलती थी हाथी से; वही उसकी एकमात्र कमाई थी। तो उसने बड़े-बड़े जूते बनवाए। फिर जब भी दक्षिणपंथियों का जुलूस निकलता तो वह उसे बड़े-बड़े जूते पहना देता, और हाथी दाईं तरफ झुक जाता; और जब वामपंथियों का जुलूस निकलता, तो वह जूते उतार देता। किसी ने हाथी की चिंता नहीं की। एक दिन हाथी गिर गया, ठीक कनॉट प्लेस में ही गिर गया, क्योंकि जूतो के साथ इतने बोझ को उठाना बहुत ज्यादा हो गया। और बहुत तकलीफदेह था यह-यह 'आसन' नहीं था। उसका चलना बहुत मुश्किल था। वह गिर पड़ा और मर गया। यही स्थिति है तुम्हारे मन की भी. निरंतर एक अति से दूसरी अति में डोलता रहता है. बाईं ओर, दाईं ओर; दाईं ओर, बाईं ओर। मध्य में कभी नहीं। और मध्य में होना वस्तुत: 'होना' है। दोनों अतियां बोझिल होती हैं, क्योंकि तुम आराम में नहीं हो सकते। आराम होता है मध्य में, क्योंकि मध्य में बोझ नहीं होता। ठीक-ठीक मध्य में तुम निर्भार होते हो। बाईं ओर झुको, और बोझ हो जाता है। दाईं ओर झुको, और बोझ हो जाता है। और बढ़ते ही चलो. तो जितना ज्यादा तुम मध्य से दूर जाते हो, उतना ही ज्यादा बोझ बढ़ता जाता है। तुम मर जाओगे किसी दिन किसी कनॉट प्लेस में! मध्य में रही। धार्मिक व्यक्ति न वामपंथी होता है और न दक्षिणपंथी। धार्मिक व्यक्ति अतियों में नहीं जीता है। वह अतियों में जीने वाला व्यक्ति नहीं होता है। और जब तुम ठीक मध्य में होते होतुम्हारा शरीर और तुम्हारा मन दोनों ही-तो सारे द्वैत खो जाते हैं, क्योंकि सारे द्वैत हैं तुम्हारे डोलते रहने के कारण, तुम निरंतर इस ओर से उस ओर डोलते रहते हो। 'ततो द्वन्द्वानभिघाता 'जब आसन सिद्ध हो जाता है, तब वंदवों से उत्पन्न अशांति की समाप्ति होती है। और जब कहीं कोई द्वैत नहीं बचता, तब कैसे तुम तनावपूर्ण रह सकते हो? कैसे तुम परेशानी में रह सकते हो? कैसे तुम संघर्ष में रह सकते हो? जब तुम्हारे भीतर दो होते हैं, तो संघर्ष होता है। वे दो लड़ते ही रहते हैं, और वे तुम्हें विश्राम में कभी न रहने देंगे। तुम्हारा घर बंटा हुआ होता है, तुम सदा शीतयुद्ध में जीते हो। तुम बुखार में जीते हो। जब यह द्वैत तिरोहित हो जाता है, तो तुम शांत, केंद्रस्थ, मध्य में स्थिर हो जाते हो।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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