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________________ केवल तभी उपलब्ध हो सकते हो जब तुम इनकार कर देते हो अपने अहंकार को। तुम स्वयं को तभी उपलब्ध हो सकते हो जब तुम पूरी तरह मिट जाते हो। जीसस कहते हैं, 'यदि तुम चिपकते हो जीवन से, तो तुम खो दोगे उसे। यदि तुम तैयार हो उसे खोने के लिए, तो वह सदा-सदा तुम्हारे साथ रहेगा, तुम अनंत जीवन को उपलब्ध हो जाओगे।' जब पानी की बूंद गिर जाती है सागर में, तो वह स्वयं को खो देती है-इनकार कर देती है स्वयं को-और सागर बन जाती है। वह ना-कुछ खोती है और पा लेती है सागर को, वह अपनी सीमाएं गिरा देती है। जब जीसस कहते हैं, 'यदि किसी को मेरे पीछे आना है, तो उसे स्वयं को इनकार करना होगा..।' तो यह सागर कह रहा है बंद से, 'आओ, छोड़ो अपनी सीमाएं, ताकि तुम भी सागर हो सको।' और यह सबसे बड़ा स्वार्थ है-सागर हो जाना। एक बूंद बड़ी परोपकारी होती है, लेकिन वह बूंद ही बनी रहती है-क्षुद्र, सीमित, पीड़ित। लगता है जैसे वह स्वार्थी हो, वह होती नहीं। यदि तुम जाकर देखो संसार के स्वार्थी लोगों को, तो तुम उन्हें सच में स्वार्थी नहीं पाओगे। वे मड़ हैं, स्वार्थी नहीं। असली स्वार्थी व्यक्ति प्रज्ञावान हो जाते हैं। असली स्वार्थी व्यक्ति तो वे हैं जो प्रयास करते हैं निर्वाण की उपलब्धि के लिए, जो प्रयास करते हैं परमात्मा को पाने के लिए, जो प्रयास करते हैं मोक्ष पाने के लिए-मुक्ति, स्वतंत्रता पाने के लिए। वे हैं असली स्वार्थी व्यक्ति; वे नहीं जो संसार में स्वार्थी माने जाते हैं, क्योंकि वे कोशिश कर रहे हैं धन इकट्ठा करने की। वे बिलकुल मूढ़ हैं, स्वार्थी नहीं। ऐसा सुंदर शब्द मत उपयोग करो उनके लिए। वे मूढ़ हैं। क्यों तुम उनको स्वार्थी कहते हो? वे धन इकट्ठा करते रहते हैं और अपनी आत्मा बेचते रहते हैं। वे एक बड़ा घर बना लेते हैं और वे स्वयं खोखले, रिक्त हो जाते हैं। उनके पास बड़ी कार होती है और कोई आत्मा नहीं होती। और तुम उन्हें स्वार्थी कहते हो? वे सबसे ज्यादा निःस्वार्थी लोग हैं। उन्होंने कौड़ियों में अपनी आत्मा बेच दी है। ऐसा हुआ. एक आदमी रामकृष्ण के पास बहुत से सोने के सिक्के लेकर आया, और वह उन सिक्कों को रामकृष्ण को अर्पित करना चाहता था। रामकृष्ण ने कहा, 'मैं सोना छूता नहीं। इन्हें वापस ले जाओ।' वह आदमी बड़ा प्रभावित हुआ। उसने कहा, 'आप कितने निःस्वार्थी हैं!' रामकृष्ण हंसे और उन्होंने कहा, 'निःस्वार्थी और मैं? मैं तो बहुत स्वार्थी आदमी हूं। इसीलिए तो मैं सोना छूता नहीं। मैं इतना कु नहीं। तुम हो निःस्वार्थी। तुमने स्वयं को बेच दिया है सोने के सिक्कों के लिए।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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