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________________ निरापद मालूम पड़ती है, क्योंकि तुम सदा मुझ पर जिम्मेवारी डाल सकते हो। लेकिन यदि तुम सुरक्षित-निरापद ढंग चुनते हो, तो तुम मृत्यु को चुन रहे हो। तुम जीवन को नहीं चुन रहे हो। जीवन खतरनाक और असुरक्षित होता है। बुद्धिमत्ता सदा जीवन को चुनेगी-किसी भी कीमत पर, चाहे कुछ भी दाव पर लगाना पड़े, क्योंकि केवल वही एकमात्र ढंग है जीवंत होने का। बुद्धिमत्ता गुणवत्ता है सजगता की। सजग व्यक्ति मूढ़ नहीं होते। दूसरा प्रश्न : आत्म-विश्लेषण और आत्म-स्मरण के बीच क्या फर्क है? हा फर्क है। आत्म–विश्लेषण है स्वयं के विषय में सोचना। आत्म-स्मरण है बिलकुल न सोचना. आत्म-स्मरण है स्वयं के प्रति सजग होना। भेद सक्ष्म है लेकिन फिर भी बड़ा है। पश्चिमी मनोविज्ञान जोर देता है आत्म-विश्लेषण पर और पूरब का मनोविज्ञान जोर देता है आत्म-स्मरण पर। जब तुम आत्म-विश्लेषण करते हो, तो तुम क्या करते हो? उदाहरण के लिए तुम क्रोधित हो, तो तुम सोचने लगते हो क्रोध के विषय में कैसे यह उत्पन्न होता है। तुम विश्लेषण करने लगते हो कि यह क्यों उत्पन्न हुआ। तुम निर्णय करने लगते हो कि यह अच्छा है या बुरा। तुम तर्क बिठाने लगते हो कि तुम्हें इसलिए क्रोध आया क्योंकि स्थिति ही ऐसी थी। तुम क्रोध को लेकर सोच-विचार करते हो। तुम क्रोध का विश्लेषण करते हो। लेकिन ध्यान का केंद्र-बिंदु क्रोध रहता है, 'आत्म' नहीं। तुम्हारी सारी चेतना क्रोध पर केंद्रित हो जाती है। तुम देखते हो, विश्लेषण करते हो, मनन करते हो, चिंतन करते हो। यह हिसाब लगाने की कोशिश करते हो कि इससे कैसे बचें, कि क्या करें कि फिर क्रोध न आए! यह सोचने की प्रक्रिया है। तुम निर्णय लोगे कि यह बुरा है, क्योंकि यह विनाशकारी है। तुम प्रतिज्ञा करोगे कि मैं फिर यही गलती कभी नहीं करूंगा। तुम इस क्रोध पर संकल्प दवारा नियंत्रण करने की कोशिश करोगे। इसीलिए पश्चिमी मनोविज्ञान विश्लेषणात्मक हो गया है-वह विश्लेषण करता है, तोड़ता है। पूरब का जोर क्रोध पर नहीं है। पूरब का जोर है अंतस चेतना पर। जब तुम्हें क्रोध आए तो सजग हो जाना, बहुत होश से भर जाना-सोचना नहीं, क्योंकि सोचना नींद का हिस्सा है। तुम गहरी नींद में
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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