SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यादा बुद्धिमान होंगे क्योंकि वे ज्यादा जानते होंगे। वे सब कुछ जान सकते हैं, उनमें प्रत्येक जानकारी भरी जा सकती है। और वे बेहतर ढंग से काम करेंगे, क्योंकि वे यंत्र हैं। , नहीं, बुद्धिमत्ता का जानकारी से कोई भी संबंध नहीं है। उसका संबंध है सजगता से प्रज्ञा से समझ से। ज्यादा सजग होओ। फिर तुम मन की जकड़ में नहीं रहते। फिर तुम मन का उपयोग कर सकते हो जब उसकी जरूरत हो। लेकिन मन तुम्हारा उपयोग नहीं करता। फिर मन मालिक नहीं रहता - तुम मालिक होते हो, और मन सेवक होता है जब भी तुम्हें जरूरत होती है सेवक की तुम उसे बुला लेते हो, लेकिन तुम नियंत्रित नहीं होते, तुम प्रभावित नहीं होते मन के द्वारा। सामान्यतया तो मन की स्थिति ऐसी है जैसे कि कार चला रही हो ड्राइवर को कार कहती है, 'इधर 1 जाओ, और ड्राइवर को मानना पड़ता है। कई बार ऐसा होता है ब्रेक फेल हो जाते हैं, पहिया ठीक काम नहीं करता, तुम जाना चाहते हो दक्षिण और कार जाती है उत्तर की ओर। सारी व्यवस्था अस्तव्यस्त हो जाती है। यह एक दुर्घटना है। लेकिन दुर्घटना एक सामान्य बात हो गई है मानव मन के लिए निरंतर ही यह होता है कि तुम कहीं जाना चाहते हो और मन कहीं और जाता है तुम जाना चाहते थे मंदिर और मन सोच रहा था थिएटर जाने की और तुम स्वयं को थिएटर में पाते हो तुम शायद घर से चले होओगे मंदिर जाने के लिए प्रार्थना करने के लिए और बैठे होते हो तुम थिएटर में क्योंकि कार उसी ओर जाना चाहती थी, और तुम विवश होते हो। बुद्धिमत्ता है मालकियत - अपने ऊपर मालकियत । शरीर है एक यंत्र, मन है एक यंत्र. तुम मालिक हो । कोई तुमको चलाता नहीं, मन तुम्हारी आज्ञा से चलता है। यह है बुद्धिमत्ता | तो अगर तुम पूछते हो, क्या कुछ लोग दूसरों की अपेक्षा अधिक मूढ़ होते हैं? यह निर्भर करता है। मेरे देखे कुछ बहुत जानने वाले मूढ़ हैं, कुछ कम जानने वाले मूठ हैं। ये दो साधारण कोटियां हैं, क्योंकि तीसरी कोटि इतनी अनूठी है कि तुम उसे कोटि नहीं कह सकते। बहुत दुर्लभ, कभी-कभार, कोई बुद्ध होता है : बुद्ध होते हैं विवेकपूर्ण, प्रज्ञावान । लेकिन फिर वे विद्रोही मालूम होते हैं क्योंकि वे तुम्हारे अनुकूल नहीं पड़ते; तुम्हारे बंधे-बंधाए उत्तर नहीं देते। वे राजपथ पर नहीं चलते; उनका अपना ही पथ होता है। वे अपना रास्ता स्वयं बनाते हैं। बुद्धिमत्ता सदा अपना अनुसरण करती है, वह किसी दूसरे का अनुसरण नहीं करती। बुद्धिमत्ता अपना रास्ता स्वयं बनाती है। केवल मूढ़ व्यक्ति अनुसरण करते हैं। यदि तुम यहां मेरे साथ हो तो तुम यहां दो ढंग से हो सकते हो। तुम बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से यहां हो सकते हो मेरे साथ तब तुम सीखोगे मुझ से, लेकिन तुम मेरा अनुसरण न करोगे। तुम अनुसरण करोगे तुम्हारी अपनी समझ का। लेकिन यदि तुम मूढ हो, तो तुम सीखने की फिक्र नहीं करते. तुम केवल मेरा अनुसरण करते हो। वह बात आसान, कम जोखम की कम खतरनाक, ज्यादा सुरक्षित,
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy