SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को एक दर्पण, एक प्रतिछबि की भांति उपयोग करना और ध्यान देना कि कैसे तुम अपने मुखौटे बदलते हो। अपने लोभ को देखना, अपनी ईर्ष्या, अपने वैमनस्य को देखना, अपने भय को देखना, अपनी चिंताओं को, अपने मालकियत जमाने के ढंग को देखना- बस देखते रहना और सजग रहना। कुछ करने की जरूरत नहीं है। यही इस सूत्र का सौंदर्य है। पतंजलि नहीं कहते कि कुछ करो। वे कहते हैं, स्वयं का अध्ययन करो।' वही अध्ययन, वही सजगता काम करेगी। जब तुम अपनी संपूर्ण अंतस सत्ता का साक्षात्कार करोगे तो एक रूपांतरण घटित होगा। तो देखना अपने को विभिन्न भाव - दशाओं में जब तुम उदास हो, तो देखना; जब तुम निराश हो, तो देखना; जब तुम बहुत ज्यादा भरे हो आशाओं से, तो देखना; आकांक्षा है, हताशा है, तो देखना; हजारों भाव - दशाएं हैं, देखते रहना । हर भाव - दशा को भीतर झांकने का झरोखा बना लेना । जीवन के सभी रंगों में अपने को देखना। जब तुम अकेले हो, तो देखना। जब तुम अकेले नहीं हो, तो देखना। पहाड़ पर हो, अकेले हो, तो देखना फैक्टरी जाते हो, आफिस जाते हो, तो देखना कि तुम कहां बदलते हो, कैसे बदलते हो। यदि तुम देखते रहते हो... कभी क्षण भर को शिथिल नहीं होने देना है इस देखने को । बुद्ध ने कहा है, जब तुम अपने बिस्तर में सोने जाओ देखते रहना। जब तुम नींद में उतर रहे हो तो देखते रहना कि कैसे तुम्हें नींद घेर रही है। देखते ही रहना किसी भी चीज को बिना देखे मत जाने देना। यही आत्म-स्मरण, यही स्वाध्याय, सब कर देगा। तुम्हें पूछने की कोई जरूरत नहीं कि 'मैं देखने के बाद क्या करूं? कुछ करने की जरूरत नहीं रह जाती। जब तुम पूरी तरह से देख लेते हो अपनी घृणा को, तो वह खो जाती है। - : - - और यही है कसौटी जो खो जाता है देखने से वह पाप है और जो विकसित होता है देखने से, वह पुण्य है। यही एकमात्र परिभाषा मैं तुमको दे सकता हूं। मैं नहीं कहता कि यह पाप है और वह पुण्य है। नहीं, पाप और पुण्य को बतलाया नहीं जा सकता है। जो विकसित होता है देखने से पुण्य है; जो खो जाता है देखने से पाप है। क्रोध खो जाएगा देखने से; प्रेम विकसित होगा । घृणा खो जाएगी; करुणा बढ़ेगी। हिंसा खो जाएगी, प्रार्थना बढ़ेगी; जो खो जाता है देखने से, वह पाप है। उसके प्रति कुछ और करने की जरूरत नहीं होती। बस उसे देखना और वह खो जाता है। वह ऐसे खो जाता है जैसे जब तुम प्रकाश ले आते हो किसी अंधेरे कमरे में तो अंधेरा खो जाता है। वह कमरा नहीं खो जाता, अंधकार खो जाता है। तुम नहीं खो जाओगे देखने से। असल में देखने से तुम और प्रकट हो जाओगे। केवल अंधेरा खो जाएगा क्रोध का अंधेरा, मालकियत का अंधेरा, ईर्ष्या का अंधेरा वह सब खो जाएगा। केवल तुम्हीं बचोगे अपनी मौलिक शुद्धता में केवल तुम्हारा अंतर- आकाश बचेगा- खाली, शून्य । - 'स्वाध्याय के द्वारा दिव्यता के साथ एकत्व घटित होता है।'
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy