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________________ हो-अपने को भुलने के लिए, स्वयं को संबंध में डुबो देने के लिए। वह कोई प्रेम नहीं है। प्रेम तो तभी होता है, जब तुम मृत्यु के पार चले जाते हो। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं. यदि तुम भयभीत हो मृत्यु से तो कैसे तुम प्रेम कर सकते हो त्र: उस भय के कारण तुम कोई संबंध बना सकते हो, लेकिन वह संबंध भय पर ही आधारित होगा। इसीलिए निन्यानबे प्रतिशत धार्मिक व्यक्ति प्रार्थना करते हैं, लेकिन उनकी प्रार्थना सच्ची प्रार्थना नहीं है। वह प्रेम से नहीं उठती, वह भय से आती है। उनका परमात्मा से संबंध भय के कारण है। केवल कभी-कभार, कोई एक प्रतिशत धार्मिक व्यक्ति ही मृत्यु के पार उठ पाते हैं। तब जो प्रार्थना जन्मती है वह भय से नहीं उठती, वह उठती है प्रेम से, अहोभाव से, कृतज्ञता से। स्वाध्यायादिष्टदेवतासम्प्रयोग:। स्वाध्याय के द्वारा दिव्यता के साथ एकत्व घटित होता है। यह बहुत महत्वपूर्ण सूत्र है. 'स्वाध्याय के द्वारा दिव्यता के साथ एकत्व घटित होता है।' व्यक्ति को अपना अध्ययन करना होता है वही एकमात्र ढंग है दिव्यता का। पतंजलि नहीं कहते कि मंदिर जाओ। वे नहीं कहते कि चर्च जाओ। वे नहीं कहते कि कोई धार्मिक अनुष्ठान करो। नहीं, दिव्यता के साथ एक होने का वह ढंग नहीं है। स्वयं में जाओ-स्वाध्याय, स्वयं का अध्ययन–क्योंकि 'वह' तुम में छिपा है, तुम्हारे भीतर छिपा है।'वह' तुम्हारा अंतरतम केंद्र है। तुम मंदिर हो, भीतर उतरो। अध्ययन करो अपना। तुम एक अदभुत घटना हो-देखो, जानो स्वयं को। उस सब का अध्ययन करो जो तुम हो। और जिस दिन तुम अपने को पूरी तरह जान लेते हो, 'वह' प्रकट हो जाएगा। वह' तुम में ही छिपा है, तुम्हारे भीतर छिपा है। वह तुम ही हो-अपने आत्यंतिक प्राणों में। तो अपना अध्ययन करना। इस 'अध्ययन' का वही अर्थ है जो गुजिएफ के 'आत्म-स्मरण' का अर्थ है। पतंजलि के स्वाध्याय का मतलब वही है जिसे गुरजिएफ ने 'सेल्फ-रिमेंबरिंग' कहा है। स्वयं का स्मरण बनाए रखना और ध्यानपूर्वक देखते रहना। तुम लोगों के साथ कैसे संबंधित होते हो-ध्यान देना इस बात पर। संबंध एक दर्पण है। तुम अजनबियों से किस तरह संबंधित होते हो, जिन लोगों को तुम जानते हो, उनके साथ कैसे संबंधित होते हो? तुम अपने नौकर के साथ किस तरह का व्यवहार करते हो; तुम अपने मालिक के साथ किस तरह का व्यवहार करते हो? बस, देखते रहना सब। प्रत्येक संबंध
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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