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________________ शरीर ही सब कुछ नहीं है। लेकिन तुम दूसरे सूक्ष्म शरीर के प्रति तभी सजग होओगे जब यह स्थूल शरीर शुद्ध हो गया हो। योग शरीर को सताने में विश्वास नहीं करता है, योग मैसोचिस्टिक नहीं है। लेकिन योग शरीर की शुदधि में विश्वास करता है। और कई बार शरीर की शुदधि करना और उसे सताना एक समान लग सकता है। तो इस भेद को ठीक से समझ लेना है। कोई व्यक्ति उपवास करता है, और हो सकता है वह केवल स्वयं को सता रहा हो, हो सकता है वह अपने शरीर के विरुद्ध हो-आत्मघाती हो, स्व-पीड़क हो। लेकिन फिर कोई और व्यक्ति उपवास करता है, और हो सकता है वह शरीर को सता न रहा हो, और वह स्व-पीड़क न हो, और वह किसी भी ढंग से शरीर को नष्ट करने की कोशिश न कर रहा हो, बल्कि वह उसे शुद्ध करने की कोशिश कर रहा हो। क्योंकि गहरे उपवास में शरीर की कुछ शुद्धियां उपलब्ध होती हैं। तुम रोज निरंतर भोजन किए चले जाते हो; तुम कभी कोई विश्राम नहीं देते शरीर को। शरीर बहुत सी मृत कोशिकाएं इकट्ठी करता रहता है-वे एक बोझ बन जाती हैं। वे न केवल बोझ और भार होती हैं, वे दूषित होती हैं, वे जहरीली भी होती हैं। वे शरीर को अशुद्ध कर देती हैं। जब शरीर अशुद्ध होता है, तो तुम उसके पीछे छिपे सूक्ष्म शरीर को नहीं देख सकते हो। इस शरीर को स्वच्छ, पारदर्शी, शुद्ध होना चाहिए; तब अचानक तुम दूसरी पर्त के प्रति, सूक्ष्म शरीर के प्रति सजग हो जाते हो। जब सूक्ष्म शरीर शुद्ध होता है, तब तुम तीसरे शरीर के प्रति, चौथे के शरीर प्रति सजग हो जाते हो -इसी तरह और-और शरीरों के प्रति तुम सजग हो जाते हो। उपवास बड़ी मदद करता है, लेकिन बहुत सजग रहने की आवश्यकता है इसके प्रति कि कहीं शरीर नष्ट न हो रहा हो। कोई निंदा का भाव मन में नहीं होना चाहिए। और यही तो समस्या है, क्योंकि करीब-करीब सभी धर्मों ने शरीर की निंदा की है। उन धर्मों के प्रवर्तक निंदक न थे, वे जहर फैलाने वाले न थे। वे प्रेम करते थे अपने शरीर से। वे इतना ज्यादा प्रेम करते थे शरीर से कि उन्होंने उसे हमेशा शुद्ध रखा। उनका उपवास एक शुद्धिकरण था। फिर आए अंधानुकरण करने वाले अनुयायी, उपवास के गहन विज्ञान से अपरिचित। उन्होंने बिना समझे-बूझे उपवास करना शुरू किया। उन्होंने इसका मजा लिया, क्योंकि मन हिंसक होता है। वह दूसरों के साथ हिंसक होने का मजा लेता है, इसमें वह शक्तिशाली अनुभव करता है, क्योंकि जब भी तुम दूसरों के प्रति हिंसक होते हो तो तुम शक्तिशाली अनुभव करते हो। लेकिन दूसरों के प्रति हिंसक होना खतरनाक है, क्योंकि दूसरा बदला लेगा। तो फिर एक आसान रास्ता है : अपने ही शरीर के प्रति हिंसक हो जाना। उसमें कोई खतरा नहीं होता। शरीर प्रतिकार नहीं कर सकता। शरीर तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। तुम अपने शरीर को मजे से सता सकते हो; कोई रोकने वाला भी नहीं होता। यह
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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