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________________ नहीं, बुद्धत्व के बाद व्यक्तित्व नहीं बना रहता, लेकिन बुद्धत्व व्यक्तिगत होता है। तुम्हें इसे ऐसे समझना होगा : नदी मिल जाती है सागर में। जब मिल जाती है तो नदी खो जाती है-उस नदी का कोई व्यक्तित्व नहीं बचता, लेकिन केवल वैयक्तिक नदी ही सागर में मिलती है। तुम बुद्धत्व के सागर में व्यक्ति की तरह उतरते हो. तुम अपनी पत्नी को या अपने मित्र को साथ नहीं ले जा सकते-कोई उपाय नहीं है। तुम अकेले जाते हो। कोई किसी को साथ नहीं ले जा सकता। कैसे तुम किसी को अपने साथ ले जा सकते हो? जब तुम ध्यान करते हो तो तुम अकेले ही ध्यान करते हो। जिस क्षण तुम आंखें बंद करते हो और शांत हो जाते हो, हर कोई तिरोहित हो जाता है - पत्नी, मित्र, बच्चे। निकटतम लोग भी निकट नहीं रहते; निकटतम भी अब एकदम दूर हो जाते हैं। तुम्हारे गहन मौन में, आत्यंतिक केंद्र में, तुम अकेले ही होते हो। यही एकाकी सत्ता मिलेगी सागर में। तो बुद्धत्व व्यक्तिगत होता है। निश्चित ही, बुद्धत्व के बाद व्यक्तित्व तिरोहित हो जाता है, कोई व्यक्तित्व नहीं बच रहता। तो याद रखना इसे तुम्हारा भीतर जाना सामूहिक नहीं हो सकता; तुम संगठन की भांति भीतर नहीं उतर सकते, तुम संप्रदाय की भांति भीतर नहीं डूब सकते। तुम नहीं कह सकते, 'सारे ईसाइयो! चले आओ,' या 'आओ, हिंदुओं! मैं चला बुद्धत्व की ओर-और मैं सारे हिंदुओं को अपने साथ ले जाऊंगा।' कोई किसी दूसरे को नहीं ले जा सकता। यह बात नितांत अकेले में घटती है। और यही इसका सौंदर्य है, यही इसकी शुद्धता है। अपने परिपूर्ण एकाकीपन में तुम निर्वाण-सागर में उतरते हो। अभी एक क्षण पहले तुम नदी थे, बस क्षण भर पहले तुम एक व्यक्ति थे-वैयक्तिकता के शिखर थे, गौतम थेऔर बस क्षण भर बाद कुछ नहीं बचता। तुम नदी की भांति नहीं रहते; तुम सागर हो जाते हो। तुम अब यह भी नहीं कह सकते, 'मैं हं।' सागर ही है, नदी खो गई है। तुम इसे दो ढंग से कह सकते हो. एक तो ढंग यह है कि नदी खो गई है-यह बौद्ध ढंग है; या तुम कह सकते हो कि नदी सागर हो गई है-यह दूसरा ढंग है, वेदांत का ढंग है। लेकिन दोनों एक ही बात कह रहे हैं। नदी सागर हो गई है' या 'नदी खो गई है; केवल सागर है', ये एक ही बात को कहने के दो ढंग हैं। चौथा प्रश्न: हम कहां से आए हैं और हमारा होना कैसे घटित हआ है?
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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