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________________ यदि तुम स्वयं के प्रति सजग हो तो तुम दूसरों के प्रति भी सजग हो जाते हो। इससे अन्यथा हो ही कैसे सकता है? यदि तुम स्वयं के प्रति सजग नहीं हो, तो तुम दूसरों के प्रति सजग कैसे हो सकते हो? सजगता घटित होनी चाहिए पहले तुम्हारे अपने भीतर। प्रकाश पहले तुम्हारे भीतर होना चाहिए, ज्योति पहले तुम्हारे भीतर जलनी चाहिए; केवल तभी प्रकाश फैल सकता है और दूसरों तक पहुंच सकता है। तुम जीते हो अंधकार में, बेहोशी में-कैसे तुम सजग हो सकते हो दूसरों के प्रति? तुम खोए हो विचारों में, सपनों में तुम दूसरों के प्रति सजग नहीं हो सकते। पति कह सकता है, 'मैं सजग हं अपनी पत्नी के प्रति और उसकी भावनाओं के प्रति।' लेकिन यह संभव नहीं है, क्योंकि पति अपने प्रति ही सजग नहीं है। वह जीता है गहन अंधकार में और बेहोशी में। वह नहीं जानता कि उसका क्रोध कहां से आता है; वह नहीं जानता कि उसका प्रेम कहा से आता है; वह नहीं जानता कि यह अस्तित्व, यह जीवन-प्रवाह कहा से आता है। वह सजग नहीं है अपने प्रति-और यह निकटतम घटना है जिसके प्रति तुम सजग हो सकते हो-और वह कहता है, 'मैं सजग हं अपनी पत्नी के प्रति और उसकी भावनाओं के प्रति।' मढ़ता भरी बात है। शायद वह सोच रहा है, सपने देख रहा है कि वह सजग है, सचेत है। हर कोई अपने सपनों में घिरा हुआ जीता है और उन सपनों में उसके प्रक्षेपण होते हैं। व्यक्ति सोचता है. 'मैं सजग हूं।' जरा पूछो पत्नी से; वह कहती है, 'वे कभी मुझे देखते तक नहीं।' पत्नी सोचती है कि वह सजग है पति के प्रति, उसकी जरूरतो के प्रति, लेकिन वे जरूरतें जिनके बारे में वह सोचती है कि वह सजग है-वे पति की जरूरतें ही नहीं हैं। ऐसा वह 'सोचती है कि वे पति की जरूरतें हैं। एक संघर्ष चलता रहता है, और दोनों सजग हैं और दोनों एक-दूसरे की फिक्र करते हैं और दोनों एकदूसरे का ध्यान रखते हैं! कोई नहीं ध्यान रख सकता दूसरे का, जब तक उसने अपना ध्यान रखने का पहला पाठ न सीख लिया हो स्वयं के भीतर अंतरतम केंद्र में। पहले अपना खयाल करना सीखो। वह सबसे करीब है, आसान है। सजगता का पहला पाठ वहा सीखो, तब तुम सजग होओगे दूसरों के प्रति। तब पहली बार तुम अपने को आरोपित नहीं करोगे, तुम व्याख्या नहीं करोगे; तुम प्रत्यक्ष देखोगे। तुम दूसरे को वैसा ही देखोगे जैसा वह है, वैसा नहीं देखोगे जैसा कि तुम चाहते हो कि वह हो या जैसा तुम सोचते हो कि वह है। तब तुम वास्तविकता को देखोगे। जब तुम्हारी आंखों से सपने खो जाते हैं और तुम्हारी आंखें सपनों से खाली होती हैं, केवल तभी तुम सजग हो सकते हो। अन्यथा तुम्हारी आंखें धुंधली होती हैं; बहुत बादल और बहुत धुआं वहा छाया रहता है। तुम देखते हो, लेकिन तुम पर्दो के पीछे से देखते हो, और वे पर्दे हर चीज को बदल देते हैं। वे विकृत कर देते हैं। वे प्रतिबिंबित नहीं करते, अपना आरोपण करते हैं। जब तुम्हारे
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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