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________________ है? वह मंदिर है, उसकी निंदा नहीं करनी है। न ही उसके पीछे इतने पागल हो जाना है कि तुम खो ही जाओ उसमें। मंदिर प्रतिमा नहीं है; मंदिर गर्भगृह नहीं है। गर्भगृह तो वह अंतरस्थ केंद्र है जिसके लिए मंदिर है। तुम्हें मंदिर की दीवारों को नहीं पूजने लगना है, लेकिन उसके विरोध में हो जाने की भी कोई जरूरत नहीं है कि तुम मंदिर को ही नष्ट करने लगो। एक गहन अतादात्म्य चाहिए। तुम्हें जानना है : 'मैं शरीर में हूं लेकिन शरीर के पार हूं। मैं शरीर में हूं लेकिन मैं शरीर नहीं हूं। मैं शरीर में हूं लेकिन उसमें ही सीमित नहीं हूं। मैं शरीर में हूं लेकिन मैं उसके पार हूं।' शरीर एक बंधन नहीं होना चाहिए। निश्चित ही, वह एक आश्रय है, और एक सुंदर आश्रय है। व्यक्ति को उसके प्रति अनुगृहीत होना चाहिए; उससे लड़ने की कोई जरूरत नहीं है। उससे लड़ना एकदम मूढ़ता भरी और बचकानी बात है। उसका उपयोग करना चाहिए और ठीक से उपयोग करना चाहिए। 'जुगुप्सा' का अर्थ है... अगर मुझे इसे कहना हो तो मैं कहूंगा : योगी का मोह- भंग हो जाता है शरीर के प्रति। घृणा नहीं होती, केवल मोह- भंग होता है। वह नहीं सोचता कि शरीर दवारा, आत्मा जिस आनंद को खोज रही है, वह संभव है। नहीं। लेकिन वह इसके विपरीत भी नहीं सोचता कि शरीर को नष्ट करके वह आनंद संभव है। नहीं, वह दवैत को गिरा देता है। वह शरीर में मेहमान की भांति रहता है और वह शरीर को मंदिर समझता है। 'जब शुद्धता उपलब्ध होती है, तब योगी में स्वयं के शरीर के प्रति एक जुगुप्सा और दूसरों के साथ शारीरिक संपर्क में आने के प्रति एक अनिच्छा उत्पन्न होती है।' जब तुम शरीर में बहुत ज्यादा जीते हो, तब तुम सदा उत्सुक होते हो दूसरे शरीरों के संपर्क में आने के लिए, दूसरों के शरीरों से संपर्क बनाने की एक कामना होती है। इसे तुम प्रेम कहते हो। यह प्रेम नहीं है, यह केवल कामना है। क्योंकि शरीर अकेला नहीं जी सकता। वह दूसरे शरीरों से संबंधित होकर ही जी सकता है। एक बच्चा मां के गर्भ में होता है; नौ महीने मां का शरीर बच्चे के शरीर को पोषित करता है। बच्चे का शरीर बढ़ता है मां के शरीर से, जैसे कि वृक्ष से शाखाएं फूटती हैं। जब बच्चा बड़ा होता है, तो निश्चित ही वह गर्भ से बाहर आ जाता है, लेकिन फिर भी गहन रूप से जुड़ा रहता है। मां के स्तन से जुड़ा रहता है बच्चा केवल दूध ही नहीं ग्रहण करता-शरीर की ऊष्मा भी पाता है, जो कि एक शारीरिक जरूरत है। और अगर बच्चे को मां की ऊष्मा नहीं मिलती, तो वह कभी स्वस्थ नहीं हो सकता। उसका शरीर सदा बीमार रहेगा। शायद उसे सब कुछ मिल रहा हो जो शरीर के लिए जरूरी है-भोजन, दूध, विटामिन
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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