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________________ उपलब्ध हो जाते हैं, वे ज्यादा स्त्रैण हो जाते हैं। बुद्ध को देखो. उनका चेहरा, उनका शरीर-उसकी गोलाई, उसकी सुकोमलता-वह स्त्रैण जान पड़ती है। हिंदुओं ने बिलकुल ठीक किया है-उन्होंने बुद्ध को, महावीर को, कृष्ण को या राम को कभी दाढ़ीमुंछ सहित नहीं दिखाया; कभी नहीं। ऐसा नहीं है कि उनमें किसी तरह के हार्मोन्स की कमी थी और उनके दाढ़ी-मूंछ नहीं थी। उनकी दाढ़ी-मूंछ जरूर सुंदर रही होगी, लेकिन हिंदुओं ने वह भाव ही गिरा दिया। क्योंकि दाढ़ी-मूंछ के साथ तो वे पुरुष लगते, और उनकी अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिए स्त्रैण भाव-भंगिमा चाहिए : बुद्ध के शरीर की वह गोलाई, वह सुकोमलता। और संगमरमर ने अदभुत रूप से मदद की, संगमरमर उसे एक स्त्रैण गुणवत्ता दे देता है। नीत्से ने बुद्ध की और जीसस की आलोचना में उन्हें 'स्त्रैण' कहा है। उसकी आलोचना बिलकुल बेतुकी है, लेकिन उसने एक बात यह बिलकुल ठीक पकड़ी कि वे स्त्रैण हैं। जब काम-ऊर्जा तिरोहित हो जाती है, तो वह कहां जाती है? वह बाहर नहीं जाती; वह भीतर एक कुंड बन जाती है। व्यक्ति सहज ही शक्ति और ऊर्जा से भरा हुआ अनुभव करता है। ऐसा नहीं कि वह उसका प्रयोग करता है और लड़ने लगता है। अब तो कोई भाव ही नहीं रह जाता लड़ने का। व्यक्ति इतना शक्तिशाली होता है कि वस्तुत: लड़ना संभव ही नहीं होता। केवल कमजोर व्यक्ति लड़ते हैं। जिन्हें अपनी शक्ति के प्रति आशंका होती है वे लड़ते हैं यह प्रमाणित करने के लिए कि वे शक्तिशाली हैं। असल में शक्तिशाली व्यक्ति लड़ते ही नहीं। वे पूरी बात को खेल की भांति लेते हैं, बच्चों के खेल की भांति लेते हैं। जब योगी सुनिश्चित रूप से अपरिग्रह में प्रतिष्ठित हो जाता है तब अस्तित्व के 'कैसे' और 'कहां से का ज्ञान उदित होता है। जब योगी अपरिग्रह में प्रतिष्ठित हो जाता है, जब वह अपने सिवाय किसी और चीज पर मालकियत नहीं रखता; वह सम्राट हो सकता है, वह महल में रह सकता है, लेकिन वह उस पर मालकियत नहीं रखता। अगर वह छिन जाए, तो एक हलकी सी तरंग भी न उठेगी उसके मन में। एक महान योगी के विषय में एक कथा है; उसका नाम था जनक। भारत में उसे बहुत सम्मान से याद किया जाता रहा है सदियों से, और भारत ने उसकी भांति किसी और को इतना सम्मान कभी नहीं दिया, क्योंकि एक ढंग से वह अनूठा है। बुद्ध ने अपना महल छोड़ा, राज्य छोड़ा; महावीर ने अपना महल और राज्य छोड़ा; जनक ने कभी कुछ नहीं छोड़ा। बुद्ध और महावीर तो हजारों हैं, पूरा
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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