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________________ दूसरा प्रश्न: कृपया समझाएं कि तामसिक राजसिक और सात्विक व्यक्तियों के लिए ध्यान की कौन कौन सी विधियां अलग- अलग रूप से अनुकूल होती हैं। आप हमेशा सक्रिय ध्यान की विधि ही क्यों देते हैं? सक्रिय विधि असल में बड़ी अदभुत विधि है। यह किसी खास प्रकार के व्यक्ति से संबंधित नहीं है यह सभी की मदद कर सकती है जो आदमी तमस से, आलस्य से, निष्क्रियता से भरा है, यह उसे बाहर ले आएगी उसके तमस से यह उसमें इतनी अधिक ऊर्जा भर देगी कि तमस टूट जाएगा; सारा न भी टूटे, तो भी उसका एक हिस्सा तो टूटेगा ही । यदि तामसी व्यक्ति इसे कर सके तो यह बहुत चमत्कार कर सकती है, क्योंकि तामसी आदमी में असल में ऊर्जा का अभाव नहीं होता। ऊर्जा तो होती है, लेकिन सक्रिय स्थिति में नहीं होती, सक्रिय दशा में नहीं होती ऊर्जा गहरी नींद में पड़ी होती है। सक्रिय ध्यान एक अलार्म की भांति काम, कर सकता है: वह निष्क्रियता को सक्रियता में बदल सकता है; वह ऊर्जा को गतिशील कर सकता है; वह तामसी व्यक्ति को तमस के बाहर ला सकता है। दूसरे प्रकार का व्यक्ति, राजसिक प्रकार का, जो कि बहुत सक्रिय होता है असल में जरूरत से ज्यादा सक्रिय होता है, उसके भीतर इतनी ऊर्जा होती है कि उसे सूझता नहीं कि वह क्या करे, एक ऊर्जा का उफनता आवेग होता है- सक्रिय विधि उसे मदद देगी निर्भार होने में, हलके होने में सक्रिय विधि के बाद वह निर्भार अनुभव करेगा। और जीवन में सक्रियता के लिए जो उसकी उत्तेजना है, निरंतर पागलपन है, वह धीमा पड़ जाएगा। व्यस्त रहने की उसकी दौड़ तिरोहित हो जाएगी। निश्चित ही उसे तमस में जीने वाले व्यक्ति से ज्यादा लाभ मिलेगा, क्योंकि तामसिक व्यक्ति को तो पहले सक्रिय बनाना पड़ता है। वह सीढ़ी के निम्नतम तल पर जीता है। लेकिन एक बार वह सक्रिय हो जाए, तो सब संभव हो जाता है। एक बार वह सक्रिय हो जाए, तो वह दूसरे प्रकार का हो जाएगा; अब वह राजसिक हो जाएगा। और सात्विक आदमी को सक्रिय ध्यान बहुत सहायता देता है। वह जड़ता में नहीं जीता; उसकी ऊर्जा को ऊपर लाने की कोई जरूरत ही नहीं होती। वह पागलपन की हद तक सक्रिय भी नहीं होता, तो किसी कैथार्सिस की, किसी रेचन की कोई जरूरत नहीं होती उसको। वह संतुलित होता है, दूसरे दोनों प्रकारों से कहीं ज्यादा शुद्ध, दूसरे दोनों प्रकारों से ज्यादा प्रसन्न, दूसरे दोनों प्रकारों से ज्यादा हल्का । तो सक्रिय ध्यान उसकी मदद कैसे करेगा? वह उत्सव बन जाएगा उसके लिए वह बस बन जाएगा एक गीत, एक नृत्य, समय के साथ एक सहभागिता सब से ज्यादा लाभ उसे ही मिलेगा ।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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