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________________ अएसंभव है। कोई किसी को सुखी नहीं कर सकता है। ज्यादा से ज्यादा मैं इतना ही कह सकता हूं 'मैं तुम्हें चोट नहीं पहुंचाऊंगा।' उतनी बात मेरे सामर्थ्य में है कि मैं चोट न पहुंचाऊं। लेकिन मैं कैसे कह सकता हूं कि 'मैं तुम्हें सुखी करूंगा!' इसीलिए प्रेम में विषाद होता है। प्रेमी परस्पर आश्वासन देते हैं-जाने, अनजाने-सुंदर सपने, स्वर्ग के आश्वासन देते हैं; और प्रत्येक राह देख रहा होता है आश्वासनों के पूरे होने की, और फिर कोई आश्वासन कभी पूरा नहीं होता। कोई सुखी नहीं कर सकता तुम्हें-सिवाय तुम्हारे। जब तुम प्रेम में पड़ते हो, तो पुरुष सोच रहा होता है कि स्त्री उसे एक सुंदर जीवन, एक सम्मोहक, एक अदभुत संसार देगी; और स्त्री भी सोच रही होती है कि पुरुष उसे परम स्वर्ग में ले जाएगा। लेकिन कोई किसी को कहीं नहीं ले जा सकता। इसीलिए प्रेमी विषाद अनुभव करते हैं; आश्वासन झूठा निकलता है। ऐसा नहीं है कि वे धोखा दे रहे होते हैं एक-दूसरे को, वे स्वयं ही धोखे में होते हैं। ऐसा नहीं है कि वे जान-बूझ कर धोखा दे रहे थे एक-दूसरे को, उन्हें पता नहीं था, उन्हें होश नहीं था कि वे क्या कर रहे हैं। महावीर, बुद्ध, पतंजलि-वे एक अकाव्यात्मक शब्द का प्रयोग करते हैं। हालाकि यह अच्छा नहीं लगता है, यह नकारात्मक है। वे कहते हैं, 'हिंसा नहीं' -बस इतना ही! 'मैं तुम्हें चोट नहीं पहुचाऊंगा'-इतनी बात पूरी की जा सकती है। फिर भी कोई पक्की गारंटी नहीं है कि तुम चोट अनुभव नहीं करोगे।'मैं तुम्हें चोट नहीं पहुंचाऊंगा,' बस इतना ही; फिर भी कोई पक्का नहीं है कि तुम चोट अनुभव नहीं करोगे। अभी भी तुम चोट अनुभव कर सकते हो, क्योंकि तुम निर्मित करते हो अपने घाव, तुम निर्मित करते हो अपनी पीड़ा।'मैं उसमें सहयोगी न होऊंगा,' बस इतना ही कह सकते हैं पतंजलि, 'मेरा उसमें कोई हाथ न होगा। मैं तुम्हें चोट नहीं पहुंचाऊंगा।' 'जब योगी सुनिश्चित रूप से प्रतिष्ठित हो जाता है-अहिसा के इस दृष्टिकोण में कि वह किसी को चोट न पहंचाएगा-तब जो उसके सान्निध्य में आते हैं, वे सब शत्रुता छोड़ देते हैं।' ऐसा आदमी जो किसी भी प्रकार से हिंसा का विचार नहीं करता, कल्पना नहीं करता-चेतन, अचेतन जिसकी कोई इच्छा नहीं रहती किसी को चोट पहुंचाने की-उसके सान्निध्य में शत्रुता का त्याग घटित होता है। लेकिन इससे पहले कि तुम यह निष्कर्ष बनाओ और बहुत से प्रश्न खड़े हो जाते हैं। जीसस को सूली दी गई; शत्रुता का भाव नहीं छोड़ा गया! इसलिए अगर तुम जैनों से पूछो, तो वे नहीं कहेंगे कि जीसस बुद्धत्व को उपलब्ध थे, क्योंकि लोगों ने उनको सूली दी। लेकिन यही तो हुआ महावीर के साथ। उनके बुद्धत्व के बाद उनको पत्थर मारे गए। यही हुआ बुद्ध के साथ-हा, उन्हें सूली नहीं दी गई, लेकिन पत्थर मारे गए, अपमानित किया गया। लोगों ने बहुत कोशिशें की उन्हें मार डालने की। तो कैसे समझाएं इसे? जैन और बौदध-उनके पास इसके लिए व्याख्याएं हैं। जब जीसस की बात आती
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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