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________________ उसके भीतर झांका और कहा, 'ही।' और उसी दिन सांझ एक तीसरा आदमी आया। उसने पूछा, 'क्या ईश्वर है?' और बुद्ध मौन रहे, उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया । यदि उनके मन में कोई निर्धारित दृष्टि रही होती, तो उत्तर में एक संगति होती, क्योंकि वह स्थिति के प्रति प्रतिसंवेदन नहीं होता, वह सदा मन की धारणा से आता; वह बिलकुल संगत होता। यदि वे नास्तिक होते, उनका ईश्वर में कोई विश्वास न होता, तो प्रश्नकर्ता कोई भी हो उससे कुछ अंतर न पड़ता। असल में बंधी बधाई धारणा रखने वाला व्यक्ति कभी तुमको नहीं देखता, परिस्थिति को नहीं देखता। उसके पास एक जड़ विचार होता है, सच पूछा जाए तो उसे अपनी ही धुन होती है। बुद्ध ने तीनों आदमियों से कह दिया होता, 'नहीं' – यदि वे नास्तिक होते। यदि वे आस्तिक होते तो उन्होंने तीनों आदमियों से कह दिया होता, 'ही ।' असल में जब तुम्हारे पास कोई निश्चित धारणा हो है, कोई दृष्टिकोण होता है, कोई पूर्वाग्रह, कोई बंधा हुआ ढांचा होता है - मन होता है – तो व्यक्ति, वह जीवंत स्थिति अप्रासंगिक हो जाती है तब तुम परिस्थिति की ओर नहीं देखते। अन्यथा प्रतिसंवेदन बिलकुल ही अलग होंगे। एक गहन आंतरिक संगति होगी - अस्तित्व की संगति, उत्तरों की नहीं। बुद्ध वही हैं जब उन्होंने कहा नहीं । बुद्ध वही हैं जब उन्होंने कहा ही । बुद्ध वही हैं जब उन्होंने कुछ नहीं कहा और चुप रह गए। लेकिन स्थितियां भिन्न-भिन्न थीं। इन तीनों स्थितियों में बुद्ध का शिष्य आनंद उपस्थित था। वह उलझन में पड़ गया। वे तीनों आदमी कुछ उन दो उत्तरों के विषय में जो बुद्ध ने दिए थे, लेकिन आनंद मौजूद था तीनों ही स्थितियों में जब रात को बुद्ध शय्या पर विश्राम के लिए लेटने वाले थे तो आनंद ने कहा, 'एक प्रश्न है। आपने एक ही प्रश्न का उत्तर तीन ढंग से क्यों दिया - परस्पर विरोधी ढंग से, विरोधाभासी ढंग से? बुद्ध ने कहा, मैंने तुम्हें कोई उत्तर नहीं दिया- तुम चिंता मत करो। तुम अपना प्रश्न पूछ सकते हो और मैं तुम्हें उत्तर दूंगा। वे उत्तर तुम्हें नहीं दिए गए थे। तुम बीच में क्यों आए ?' उत्तर स्थिति के अनुकूल दिया जाता है। जब स्थिति बदल जाती है, उत्तर बदल जाता है। यह एक प्रतिसंवेदन है। बुद्ध कहा, 'वह पहला पूछने वाला आदमी नास्तिक था। वस्तुतः वह जिज्ञासु था ही नहीं। जब मैंने उसे देखा तो उसके पास एक निश्चित धारणा थी वह पहले से ही तय कर चुका था, निष्कर्ष पर पहुंच चुका था। एक निष्कर्ष था उसके पास कि कहीं कोई ईश्वर नहीं है वह आया था केवल मुझसे पुष्टि पाने के लिए, ताकि वह कह सके लोगों से कि बुद्ध का भी विश्वास वही है जो मेरा विश्वास है कि कहीं कोई ईश्वर नहीं है। इसलिए मुझे उसे नहीं कहना पड़ा।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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