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________________ इन दिनों जन्म से लेकर मृत्यु तक हर बात राजनीति द्वारा नियंत्रित निर्देशित आदेशित प्रभावित प्रशासित और परिचालित की जा रही है। तो जब तक राजनीति ठीक नहीं हो जाती सारे धार्मिक और वैज्ञानिक प्रयास व्यर्थ हो सकते हैं क्योंकि यदि आज संसार में अराजकता और अव्यवस्था है पीड़ा और दुख है तो केवल गंदी राजनीति के कारण ही; क्या ऐसा नहीं है? प्रश्न दो भागों में है। मनुष्यता गंदे राजनीतिज्ञों के कारण गंदी नहीं है, गंदे राजनीतिज्ञ हैं गंदी मनुष्यता के कारण। तुम्हें इसे ठीक से समझ लेना है। जिम्मेवारी राजनीतिज्ञों पर मत डालना, वे तुम्हारा ही प्रतिनिधित्व करते हैं और कुछ नहीं। यह बड़ी नासमझी की बात है कि पहले तो तुम उन्हें चुनते हो, फिर तुम उन्हें गंदा कहते हो; और जब तुम उन्हें चुनते हो, तो तुम गंदे से गंदे को चुनते हो। तुम वोट देते हो उनको, और फिर तुम उनको गंदा कहते हो। कैसे टपक पड़ते हैं वे? कहा से आते हैं वे? वे आते हैं तुम्हारे द्वारा। वे तुम्हारे समर्थन, तुम्हारे सहयोग से आते हैं, अगर तुम्हारा उनको समर्थन न मिले, तो वे खो जाएंगे। तो उनको गंदा मत कहना। यह एक पुरानी तरकीब है मन की : हमेशा दूसरे पर जिम्मेवारी डाल दो और खुद अपराध-भाव से मुक्त हो जाओ। तुम्ही हो वास्तविक अपराधी। यदि गंदे राजनीतिज्ञ हैं, तो वे तुम्हारे गंदे मन के कारण हैं; कहीं तुम्हारे मन में हैं उनकी जड़ें; वहीं से उन्हें पोषण मिलता है। तो राजनीतिज्ञों को बदलने मात्र से कछ नहीं बदलेगा। हजारों-हजारों वर्षों से आदमी और कछ नहीं कर रहा है, केवल राजनीतिज्ञों को बदल रहा है; तो भी कुछ हल होता नहीं क्योंकि व्यक्ति स्वयं को नहीं बदलता है। तुम बदल सकते हो इन राजनीतिज्ञों को, लेकिन फिर आने वालों को कौन चनेगा? फिर तुम्हीं तो चुनोगे न! और जब भी कोई राजनीतिज्ञ सत्ता के बाहर हो जाता है, तो वह बड़ा संदर, भला, निर्दोष लगता है, क्योंकि बिना सत्ता के तुम गंदे नहीं हो सकते। गंदे होने के लिए तुम्हें सत्ता चाहिए। इसलिए जब भी कोई राजनीतिज्ञ सत्ता में नहीं रहता तो वह बड़ा विनीत, बड़ा पुनीत जान पड़ता है। जरा उसे सत्ता में पहुंचा दो और तुरंत वह रूपांतरित हो जाता है, वह वही व्यक्ति नहीं रह जाता है। क्योंकि राजनीति है सत्ता की दौड़। वह व्यक्ति सत्ता के पीछे भाग रहा है, तो उसे विनीत होना पड़ता है तुम्हें विश्वास दिलाने के लिए, तुम्हें फुसलाने के लिए, कि वह विनम्र आदमी है, साधु आदमी है। एक बार वह सत्ता में आ जाता है, तो फिर वह तुम्हारी फिक्र नहीं करता। असल में, उसने कभी की ही न थी फिक्र, वह तो मात्र एक खेल खेल रहा था तुम्हारे साथ। वह फुसला रहा था तुमको, शोषित कर रहा था तुमको। अब उसने पा लिया अपना लक्ष्य तो क्यों करेगा वह तुम्हारी चिंता? कौन हो तुम? वह तुमको पहचानता भी नहीं! अब इतने दिनों से संजोया
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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