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________________ पतंजलि कभी रेचन की बात नहीं करते; मुझे तुम्हारे कारण रेचन की बात करनी पड़ती है। लेकिन एक बार तुम समझ लेते हो, और यदि तुम ऊर्जा को रूपांतरित कर सकते हो, तो रेचन की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती, क्योंकि रेचन एक तरह से ऊर्जा को फेंकना है। लेकिन, दुर्भाग्यवश, बिलकुल भी कछ किया नहीं जा सकता। और तमको इतनी सदियों से दमन सिखाया गया है कि ऊर्जा का | दमन जैसा मालुम पड़ता है, इसलिए रेचन ही मार्ग है। पहले तुम्हें निर्मक्त होना होता है। तुम थोड़े निर्भार होते हो, हलके होते हो-और फिर तुम्हें ऊर्जा के रूपांतरण की कला सिखाई जा सकती है। रूपांतरण है ऊर्जा का उच्चतर तल पर उपयोग, वही ऊर्जा एक अलग गुणवत्ता के साथ अभिव्यक्त होती है। तो इसे प्रयोग करना। तुम में से बहुत से लोग लंबे समय से सक्रिय ध्यान करते रहे हैं। तुम प्रयोग कर सकते हो। अब जब क्रोध आए, उदासी पकडे, तो बैठ जाना मौन और उदासी को बढ़ने देना प्रसन्नता की ओर- थोड़ी सहायता-उसे थोड़ा सहयोग देना, मदद देना। अति मत करना और जल्दबाजी मत करना। क्यों? क्योंकि पहले तो उदासी राजी नहीं होगी प्रसन्नता में बदलने के लिए। क्योंकि 'सदियों सदियों से, जन्मों -जन्मों से, तमने उसे उस ओर बढने नहीं दिया है, तो वह राजी नहीं होगी। जैसे कि तुम किसी घोड़े को नए मार्ग पर चलाओ जिस पर वह कभी नहीं चला है, तो वह राजी नहीं होगा। वह पुराने ढर्रे पर, पुराने मार्ग पर, पुरानी लीक पर जाने का प्रयत्न करेगा। तो धीरे - धीरे राजी करके दूसरे मार्ग पर ले आना। कहना उदासी से, 'भयभीत मत होओ। यह बहुत बढ़िया मार्ग है, आओ इस मार्ग पर। तुम प्रसन्नता बन सकती हो, और इसमें कुछ गलत नहीं है और न ही यह असंभव है।' थोड़ा फसलाना; बात करना अपनी उदासी से। और एक दिन तुम अचानक पाओगे कि उदासी बढ़ गई एक नए मार्ग की ओर : वह प्रसन्नता में रूपांतरित हो गई। उस दिन योगी का जन्म होता है, उससे पहले नहीं। उससे पहले तो तुम बस तैयारी कर रहे हो। विपरीत विचारों पर मनन करना आवश्यक है क्योंकि हिंसा आदि विचार भाव और कर्म-अज्ञान एवं तीव्र दुख में फलित होते है- फिर वे अल्प मध्यम या तीव्र मात्राओं के लोभ क्रोध या मोह द्वारा स्वयं किए हुए दूसरों से करवाए हुए या अनुमोदन किए हुए क्यों न हों। जो भी नकारात्मक है, वह खतरनाक है तुम्हारे लिए और दूसरों के लिए। जो भी नकारात्मक है, वह पहले से ही नरक बना रहा होता है तुम्हारे लिए और दूसरों के लिए; वह दुख और पीड़ा बना रहा है तुम्हारे लिए और दूसरों के लिए। तो सजग रहो। यदि तुम ने नकारात्मक विचार सोचा भी, तो वह जगत के लिए एक वास्तविकता बन चुका। ऐसा नहीं है कि जब तुम कुछ करते हो तभी वह
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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