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________________ चीन बिलकुल अलग था। उन्हें सिद्धांतो में कोई रुचि न थी; बल्कि उन्हें जीने में रुचि थी। उन्हें विचार करने की अपेक्षा होने में अधिक रुचि थी। और लाओत्स् है परम शिखर। जब बोधिधर्म चीन गया, तो ये दो धाराएं मिली-लाओत्सु का ध्यान और बुद्ध का ध्यान। वे दो धाराएं मिलीं, और एक सुंदरतम घटना का जन्म हुआ, झेन। उसमें गुणवत्ता है बुद्ध की और उसमें गुणवत्ता है लाओत्सु की। वह न तो बुद्धवादी है और न ताओवादी है; वह दोनों ही है। वह इस धरती पर हुई बड़ी से बड़ी क्रॉस-ब्रीडिंग है। पतंजलि बहुत तर्कसंगत हैं, तर्कसंगत हैं अध्यात्म के जगत में। एक-एक कदम वे आगे बढ़ते हैं; वे वैज्ञानिक र सकते थे किसी आइंस्टीन को, किसी विटगिन्स्टीन को या कि रसेल को। लाओत्सु आइंस्टीन को संतुष्ट नहीं कर सकते थे, वे रसेल को या विटगिन्स्टीन को संतुष्ट नहीं कर सकते थे, क्योंकि वे अतर्कसंगत मालूम पड़ते। वें बिलकुल पागलपन की बात कर रहे थे। लेकिन पतंजलि ने बड़े से बड़े वैज्ञानिक को संतुष्ट कर दिया होता, क्योंकि वे बहुत वैज्ञानिक ढंग से बोलते थे और बहुत कम से आगे बढ़ते थे, एक-एक कदम, बीच की कड़ी को स्पष्ट करते हुए। तो शिक्षाएं भिन्न हैं क्योंकि पतंजलि पैदा हुए थे भारत में, बोल रहे थे भारतीयों से बहुत मननशील देश। लाओत्स बोल रहे थे ध्यानियों से; चीन उन दिनों बड़ा ध्यानी देश था। दोनों बोल रहे थे अलग अलग लोगों से, अलग-अलग तरह के शिष्य उनके आस-पास इकट्ठे हुए थे। तो शिक्षाएं भिन्न होती हैं क्योंकि शिक्षाएं सीखने वालों के लिए होती हैं। शिक्षक भिन्न नहीं होते। यदि पतंजलि अकेले हों और लाओत्सु अकेले हों तो वे दोनों बिलकुल एक समान होंगे। लेकिन यदि पतंजलि अपने शिष्यों के साथ हों, और लाओत्सु अपने शिष्यों के साथ हों, तो वे अलग होंगे। यदि पतंजलि और लाओत्सु मौन हों, तो वे एक जैसे ही होंगे, लेकिन यदि वे किसी से बोलते हैं तो वे अलग होंगे। शिक्षक को शिष्य के हिसाब से बोलना होता है-उसकी समझ, उसकी क्षमता, उसकी बदधि, उसके संस्कार के हिसाब से बोलना होता है। उसे अपनी शिक्षा को शिष्य के स्तर तक ले आना होता है; अन्यथा वह शिक्षक नहीं है। इसीलिए शिक्षाओं में भेद है। और एक और बात : दो तरह के लोग होते हैं। एक, जो कि बहुत साहसी होते हैं और छलांग लगा सकते हैं; असल में कहना चाहिए कि दुस्साहसी होते हैं-सोचते-विचारते नहीं। एक खास भाव - दशा में वे छलांग लगा सकते हैं; वे परिणाम आदि की चिंता नहीं करते। फिर दूसरी तरह का व्यक्ति हैवह हिचकता है; हर तरह से पक्का कर लेगा परिणाम के बारे में, केवल तभी वह आगे बढ़ेगा। पतंजलि का आकर्षण उनके लिए है जो छलांग के पहले ही आश्वस्त होना चाहते हैं। लाओत्सु उनके लिए हैं जो किसी परिणाम की फिक्र नहीं करते, वे छलांग के लिए तैयार ही होते हैं। इन दो प्रकार के लोगों के लिए दो प्रकार की शिक्षाएं हैं, लेकिन शिक्षक समान ही होते हैं।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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