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________________ काम, सेक्स तुम्हारे अस्तित्व का निम्नतम केंद्र है-केवल वही सब कुछ नहीं है : तुम्हारे अस्तित्व के सात केंद्र हैं। जब ऊर्जा ऊपर उठती है-यदि तुम्हें पता चल जाए इस तरकीब का कि कैसे उसे ऊपर ले जाना है, तो जैसे-जैसे वह बढ़ती है एक केंद्र से दूसरे केंद्र तक, तुम बहुत से रूपांतरण अनुभव करते हो। जब ऊर्जा हृदय-चक्र के पास आती है, हृदय के केंद्र में आती है, तुम प्रेम से इतने भर जाते हो कि तुम प्रेम ही हो जाते हो। जब ऊर्जा तीसरे नेत्र के केंद्र में आती है, तो तुम बोध हो जाते हो, सजगता हो जाते हो। जब ऊर्जा अंतिम चक्र सहस्रार में आती है, तब तुम खिल उठते हो, तुम्हारा फूल खिल जाता है, तुम्हारे जीवन का वृक्ष पूर्ण रूप से खिल उठता है. तुम बुद्ध हो जाते हो। लेकिन ऊर्जा वही है। तो निंदा मत करो; दमन मत करो। रूपांतरित करो। ज्यादा बोधपूर्ण, ज्यादा सजग होओ; केवल तभी तुम समग्र रूप से विकसित हो सकोगे। और दूसरा कोई उपाय नहीं है। दूसरा उपाय केवल सपने देखना और कल्पना करना है। पांचवां प्रश्न : झेन कहता है 'जब भूख लगे तब भोजन करो और जब प्यास लगे तब पानी पीओ।' पतंजलि कहते हैं 'नियमितता।' तो सहज-स्फूर्तता और नियमितता में तालमेल कैसे बिठाएं? तालमेल बिठाने की कोई जरूरत नहीं है। यदि तुम सच में सहज-स्फूर्त हो, तो तुम नियमित हो जाओगे। यदि तुम सच में नियमित हो, तो तुम सहज-स्फूर्त हो जाओगे। तालमेल बिठाने की कोई जरूरत नहीं है। यदि तुम तालमेल बिठाना चाहोगे तो तुम बुरी तरह उलझ जाओगे। तुम एक को चुन लेना और दूसरे को बिलकुल भूल जाना। यदि तुम झेन को चुनते हो, तो पतंजलि को भूल जाओ, जैसे कि वे कभी हुए ही नहीं; तब पतंजलि तुम्हारे लिए नहीं हैं। और एक दिन अचानक तुम पाओगे कि सहज-स्फूर्तता के पीछे-पीछे नियमितता आ गई है। कैसे होता है यह? यदि तुम सहज-सरल हो, यदि तुम तभी भोजन करते हो जब तुम्हें भूख लगती है-और यदि तुम कभी अपनी इच्छा के विपरीत भोजन नहीं करते, तुम कभी अपनी इच्छा से अधिक भोजन नहीं करते, तुम सदा अपनी जरूरत के हिसाब से भोजन करते हो तो धीरे-धीरे तुम थिर हो जाओगे नियमितता में। क्योंकि शरीर एक यंत्र है, बहुत ही सुंदर जैविक यंत्र है। तब रोज उसी समय
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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