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________________ पतंजल योग सूत्र (भाग - 3 ) ओशो ('योग: दि अल्फा एक दि ओमेगा' शीर्षक से ओशो द्वारा अंग्रेजी में दिए गए सौ अमृत प्रवचनों में से तृतीय बीस प्रवचनों का हिंदी अनुवाद) धर्म की जड़ें साधना में है, योग में है। योग के अभाव में साधु का जीवन या तो मात्र अभिनय हो सकता है। या फिर दमन हो सकता है। दोनों ही बातें शुभ नहीं है। योग न भोग है, न दमन है। वह तो दोनों जागरण है। अतियों के द्वंद्व में से किसी को भी नहीं पकड़ना है। द्वंद्व का कोई भी पक्ष द्वंद्व के बाहर नहीं है। उसके बाहर जाना उनमें से किसी को भी चून कर नहीं हो सकता। जो उनमें से किसी को भी चुनता है और पकड़ता है। वह उसके द्वारा ही चुन और पकड़ लिया जाता है। योग किसी को पकड़ना नहीं है। वरन समस्त पकड़ को छोड़ना है। किसी के पक्ष में किसी को नहीं छोड़ना है। बस बिना किसी पक्ष के, निष्पक्ष ही सब पकड़ छोड़ देनी है। पकड़ ही भूल है। वह कुएं में यां खाई में गिरा देती है। वह अतियों में द्वंदों में और संघर्षों में ले जाती है। जबकि मार्ग वहां है, जहां कोई अति नहीं है। जहां दुई नहीं है। जहां कोई संघर्ष नहीं है। चुनाव न करे वरन चुनाव करने वाली चेतना में प्रतिष्ठित हों । द्वंद्व में न पड़े, वरन द्वंद्व को देखने वाले 'ज्ञान' में स्थिर हों। उसमें प्रतिष्ठा ही प्रज्ञा है। और वह प्रज्ञा ही प्रकाश में जाने का द्वार है। वह द्वार निकट है। और जो अपनी चेतना की लो को द्वंवों की अतियों से मुक्त कर लेते है, वह उस कुंजी को पा लेते है। जिससे सत्य का वह द्वार खुलता है।
SR No.034097
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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