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________________ तुम। अनाधिकृत अवस्था में जब न तो कहीं मन होता है और न ही ध्यान, उस समग्ररूपेण अनाधिकृत मन की अवस्था में, परम सत्य घटता है-उसके पहले कभी नहीं। ऐसा हुआ कि एक बड़ा झेन गुरु, जब वह संबोधि को उपलब्ध नहीं हुआ था और अभी झेन गुरु नहीं हुआ था और खोज रहा था और ढूंढ रहा था, अपने गुरु के पास गया। गुरु सदा से कहता आ रहा था लोगों से, 'ज्यादा ध्यान करो। 'जो कोई भी आया उसने पायी वही सलाह, 'ज्यादा ध्यान करो, ज्यादा ऊर्जा ले आओ उसमें। ' इस शिष्य ने किया जो कुछ भी वह कर सकता था। वह वस्तुत: उतने ही समग्र रूप से कर रहा था ध्यान जितना कि कोई मानव प्राणी कर सकता है। वह गया गुरु के दर्शन को, और उसे देख गुरु ने खास ध्यान नहीं दिया। चेहरे से खुश न दिखाई पड़ा वह। शिष्य पूछने लगा, 'बात क्या है? यदि आप ज्यादा कुछ करने को कहें, तो करूंगा मैं कोशिश। लेकिन आप मेरी ओर इतनी उदास दृष्टि से क्यों देख रहे हैं? क्या अनुभव करते हैं कि मैं एक निराशाजनक व्यक्तित्व हूं?' गुरु ने कहा, 'नहीं, ठीक उलटी है बात-तुम बहुत कुछ कर रहे हो। थोड़ा कम करो। तुम सब मिला कर ध्यान और झेन से बहुत ज्यादा भर गए हो। थोड़ा-सा कम ही काम दे देगा। ' कोई वशीभूत हो सकता है ध्यान द्वारा, और वशीभूत होना एक समस्या है। पहले तुम धन द्वारा सम्मोहित हुए, अब तुम सम्मोहित हो गए ध्यान द्वारा। धन नहीं है समस्या, आविष्ट होना, वशीभूत होना समस्या है। तुम बाजार से वशीभूत थे, अब वशीभूत हुए परमात्मा द्वारा। बाजार कोई समस्या नहीं है, बल्कि वशीभूत होना समस्या हौं व्यक्ति को स्वाभाविक और मुक्त होना चाहिए और किसी चीज दवारा सम्मोहित नहीं होना चाहिए; न तो मन दवारा और न ही ध्यान दवारा। केवल तभी खाली होने पर, सम्मोहन रहित होने पर, जब तुम एकदम उमग रहे होते, प्रवाहमान होते, परम सत्य घटता है तुम में। चौथा प्रश्न : आप प्रेम के विषय में बताते हैं और यह कि उस पर ध्यान करना कितना ठीक है लेकिन मेरी वास्तविकता ज्यादा जुड़ी है भय से। क्या आप हमें बताएंगे भय के विषय में और हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए इसके प्रति? पहली बात तो यह है कि भय प्रेम का दूसरा पहलू है। यदि तुम प्रेम में होते हो, तो भय तिरोहित हो जाता है। यदि तुम प्रेम में नहीं होते, तो भय उठ खड़ा होता है, बड़ा प्रबल भय। केवल प्रेमी होते हैं
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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