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________________ इतने निकटतम रूप से संभव है, अत: तरकीबें खोज ली गयी हैं। वे तरकीबें तुम्हारी मदद न करेंगी परम सत्य तक पहुंचने में। तो क्या करेंगी वे? –वे तो मात्र दर्शा देंगी तुम्हें तुम्हारी मूढ़ता। एक दिन अचानक बोध होने पर कि क्या कर रहे हो तुम, तरकीबें गिर जाती हैं, और परमात्मा उतर आता है। परमात्मा तो सदा से ही है। तरकीबें हैं तुम्हारे कारण; तुम मांग करते हो उनकी। लोग मेरे पास आते, और यदि मैं कहता हूं उनसे कि कोई जरूरत नहीं कुछ करने की, तो वे कहते हैं 'फिर भी कुछ दीजिए। कम से कम कोई मंत्र ही दे दीजिए आप ताकि हम उसका जप ही कर सकें। 'वे कहते कि मात्र शाति से बैठ जाना असंभव है-'हमें कुछ करना है। ' तो क्या करूं मैं इन लोगों का? यदि मैं कहता हूं उनसे, 'शांत होकर बैठो', तो वे बैठ नहीं सकते। तब कामचलाऊ रूप की कोई चीज निर्मित कर लेनी होती है। मैं दे देता हूं उन्हें कुछ करने को। उसे करते हुए, कम से कम वे कुछ घंटे व्यस्त तो रहेंगे। वे बैठे रहेंगे जपते हए, कम से कम इस मंत्र की सहायता से, वे किसी का कुछ बुरा तो नहीं करेंगे। वे बैठे ही रहेंगे : वे बुरा कर नहीं सकते। और निरंतर राम, राम, राम-जपते हुए किसी दिन वे जान लेंगे कि वे क्या कर रहे हैं। एक झेन गुरु अपने शिष्य के पास गया। शिष्य सच्चा प्रामाणिक खोजी था। वह निरंतर ध्यान कर रहा था और उसे उपलब्ध हो गया था वह अंतिम स्थल जहां गिरा ही देना होता है ध्यान; सारी तरकीबें गिरा देनी होती हैं। वे मात्र खिलौने हैं, क्योंकि बिना खिलौनों के तुम रह नहीं सकते। वे इस आशा में दिए जाते हैं कि किसी दिन तुम जान जाओगे कि वे मात्र खिलौने हैं। तुम स्वयं ही फेंक दोगे उन्हें और शांत होकर बैठ जाओगे। गरु गया क्योंकि अब सही घड़ी आ पहंची थी, और शिष्य फिर भी जारी रखे हए था अपने मंत्र का जप। वह हो गया था आदी। अब वह वशीभूत हो गया था। वह छोड़ नहीं सकता था उसे। यह ऐसा ही है कि जैसे जब कई बार तुम पाते हो कि गाने की कोई निश्चित पंक्ति मन में चलती ही जाती है। यदि तुम चाहते भी हो तो भी तुम गिरा नहीं सक थे उसे। वह लगी रहती है तुम्हारे भीतर, फिर-फिर आ पहुंचती है वह। यह कुछ ऐसी बात नहीं है जिसे कि तुम नहीं जानते। जब कोई व्यक्ति बरसों तक एक मंत्र दोहराता चला जाता है, तो करीब-करीब असंभव होता है उसे गिरा देना। वह उसकी मांस-मज्जा ही बन जाता है। वह अपनी नींद में भी नहीं गिरा सकता है उसे। जब वह नींद में होता है तो तुम उसके होंठों को देख सकते हो कहते हुए, 'राम, राम, राम। ' यह बात एक अंतर्धारा बन जाती है। निस्संदेह यह एक खिलौना होता है, एक भालू-खा, लेकिन इतना ज्यादा निकट का बन जाता है कि बच्चा सो नहीं सकता इसके बिना। गुरु गया और एकदम बैठ गया शिष्य के सम्मुख। वह बैठा हुआ था बुद्ध की भांति, जप कर रहा था, अपने मंत्र का। गुरु ले गया था अपने साथ एक ईंट और शुरू कर दिया था उसने ईंट को पत्थर पर रगड़ना : घर, घर, घर। वह करता गया ऐसा बिलकुल मंत्र की भांति ही। पहले तो शिष्य ने यह देखने
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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