SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी असभ्य लोग होते हैं। और जीवन ऐसा था कि वह बहुत सारे रेचन स्वचालित रूप से घटने देता था। उदाहरण के लिए, एक लकड़हारे को किसी रेचन की कोई जरूरत नहीं होती। क्योंकि लकड़ियां काटने भर से ही, उसकी सारी हत्यारी प्रवृत्तियां बाहर निकल जाती हैं। लकड़ी काटना पेड़ की हत्या करने जैसा ही है। पत्थर तोड़ने वाले को कोई जरूरत नहीं होती रेचनपूर्ण ध्यान करने की। सारा दिन वह यही कर रहा होता है। लेकिन आधुनिक व्यक्ति के लिए चीजें बदल गयी हैं। अब तुम इतनी सुख-सुविधा में रहते हो कि किसी रेचन की कहीं कोई संभावना नहीं है तुम्हारे जीवन में, सिवाय इसके कि तुम पागल ढंग से ड्राइव कर सको। इसीलिए पश्चिम में हर साल किसी और चीज की अपेक्षा कार दुर्घटनाओं द्वारा ज्यादा लोग मरते हैं। वही है सबसे बड़ा रोग। न तो कैंसर, न ही तपेदिक और न ही कोई और रोग इतनी मृत्यु देता है जिंदगियों को जितना कि कार चलाना। दूसरे विश्वयुद्ध में, एक वर्ष में लाखों व्यक्ति मर गए थे। सारी पृथ्वी पर हर साल ज्यादा लोग मरते हैं पागल कार ड्राइवरों द्वारा ही। यदि तुम कार चलाते हो तो तुमने ध्यान दिया होगा कि जब तुम क्रोधित होते हो तब तुम कार स्पीड से चलाते हो। तुम एक्सेलेरेटर को दबाते जाते हो, तुम बिलकुल भूल ही जाते हो ब्रेक के बारे में। जब तुम बहुत घृणा में होते, चिढ़े हुए होते तब कार एक माध्यम बन जाती है अभिव्यक्ति का। अन्यथा तुम इतने आराम में रहते हो. किसी चीज के लिए शरीर द्वारा कम से कम काम लेते हो, मन में ही ज्यादा और ज्यादा रहते हो। वे जो मस्तिष्क के ज्यादा गहरे केंद्रों के बारे में जानते हैं, कहते हैं कि जो लोग अपने हाथों द्वारा कार्य करते हैं उनमें कम चिंता होती है, कम तनाव होता है। तब तुम ठीक से सोते हो क्योंकि तुम्हारे हाथ संबंधित हैं, गहनतम मन से, मस्तिष्क के गहनतम केंद्र से। तुम्हारा दायां हाथ संबंधित है बायें मस्तिष्क से, तुम्हारा बायां हाथ संबंधित है दाएं मस्तिष्क से। जब तुम काम करते हो हाथों द्वारा, तब ऊर्जा मस्तिष्क से हाथों तक बह रही होती है और निर्मक्त हो रही होती है। लोग जो अपने हाथों दवारा कार्य करते हैं उन्हें रेचन की जरूरत नहीं होती है। लेकिन जो लोग मस्तिष्क दवारा कार्य करते हैं, उन्हें जरूरत होती है ज्यादा रेचन की। क्योंकि वे इकटठी कर लेते हैं ज्यादा ऊर्जा और उनके शरीरों में कोई मार्ग नहीं होता, उसके बाहर जाने के लिए कोई दवार नहीं होता। वह मन के भीतर ही चलती चली जाती है। मन पागल हो जाता है। लेकिन हमारी संस्कृति और समाज में-आफिस में, फैक्टरी में, बाजार में लोग जो सिर के दवारा यानी 'हेड' के दवारा कार्य करते हैं 'हेड्स' कहलाते हैं : हेड-क्लर्क, या हेड-सुपरिन्टैंडेंट; और लोग जो हाथों द्वारा कार्य करते हैं, हैड्स द्वारा वे कहलाते हैं 'हैड्स'। यह बात निंदात्मक हो जाती है। यह 'हैड्स' शब्द ही बन गया है निंदात्मक।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy