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________________ जापान में, झेन मठों में, उनके पास एक निश्चित विधि होती है पागल लोगों का उपचार करने की । पश्चिम में वे अभी तक नहीं ढूंढ पाए हैं कोई ऐसी चीज, ऐसी विधि। वे अभी तक अंधेरे में भटक रहे हैं। साधारण पागल व्यक्ति सहायता देने के पार के लगते हैं। और मनोविश्लेषक लगा देते हैं तीन वर्ष, पाच वर्ष, सात वर्ष और फिर भी, कुछ ज्यादा हासिल नहीं होता इससे तुमने सारा हिमालय छान मारा और इससे निकलता एक चूहा भी नहीं ढूंढ पाए तुम इसीलिए केवल बड़े धनपति इसका खर्च उठा सकते हैं, एक ऐश्वर्य की भांति । मनोविश्लेषण एक ऐश्वर्य है। लोग बड़े खुश होते हैं जब उनका मनोविश्लेषण किसी बड़े मनोविश्लेषक द्वारा किया जाता है, जैसे कि यह कोई बड़ी उपलब्धि की बात है और घटता कुछ नहीं है। लोग एक मनोविश्लेषक से दूसरे तक चलते चले जाते हैं। । जापान में उनके पास एक बहुत सीधी-सी विधि है। यदि कोई पागल हो जाता है तो उसे लाया जाता है मठ में उनके पास मठ से अलग, एक कोने में एक बहुत छोटी-सी कुटिया होती है। व्यक्ति को वहां छोड़ दिया जाता है। कोई उसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता है। किसी पागल आदमी में कभी मत लेना ज्यादा दिलचस्पी, क्योंकि दिलचस्पी बन जाती है भोजन | एक पागल आदमी सारे संसार का ध्यान पाना चाहता है; इसीलिए होता है वह पागल पहली बात तो यह होती है कि वह पागल है, क्योंकि मांगता है ध्यान । यही बात उसे ले गयी है पागलपन में । इसलिए कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता उसकी ओर वे खयाल रखते हैं, पर वे ध्यान नहीं देते। वे उसे भोजन देते हैं, और वे उसे सुविधापूर्ण बना देते हैं, पर कोई नहीं जाता उससे बात करने को। जो लोग भोजन लाते और दूसरी जरूरत की चीजें लाते, वे भी बात न करेंगे उससे उससे बात नहीं करने दी जाती, क्योंकि पागल आदमी पसंद करते हैं बात करना । वस्तुतः बहुत ज्यादा बात करना उन्हें ले गया है इस अवस्था की ओर। मनोविश्लेषण के साथ बात ठीक उल्टी है-मनोविश्लेषक बातें किए चले जाते हैं और घंटों बातें करने देते हैं रोगी को। पागल व्यक्ति इसका बहुत आनंद उठाते हैं, और कोई आदमी सुनता हो इतने ध्यानपूर्वक, तो बहुत सुंदर बात होती है यह। झेन मठ में कोई नहीं बात करता है पागल आदमी से कोई नहीं देता ध्यान, कोई खास ध्यान । एक सूक्ष्म तटस्थ ढंग से वे ध्यान रखते हैं, बस इतना ही। वह विश्राम करता है, बैठता है या चुपचाप बिस्तर पर लेटा रहता हैं, और कुछ नहीं करता । वस्तुतः कोई उपचार होता ही नहीं। और वह तीन सप्ताह के भीतर संपूर्णतया ठीक हो जाता है। अब पश्चिमी मनोविश्लेषक दिलचस्पी लेने लगे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह असंभव है-कि पागल आदमी को उसी के हाल पर ही छोड़ देना! पर यह होती है बौद्ध - दृष्टि, यही होती है योगियों की दृष्टि कि छोड़ देना चीजों को, क्योंकि कोई चीज बहुत देर तक स्थिर नहीं रह सकती, यदि तुम
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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