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________________ मैं बहुत बार एक छोटी-सी कथा कहता रहा हूं बुद्ध सड़क पर जा रहे हैं और दोपहर का समय है। बहुत गर्मी है और उन्हें प्यास लगती है। वे कहते हैं अपने शिष्य आनंद से तुम वापस जाओ। अभी दो या तीन मील पीछे ही हमने एक छोटी-सी नदी पार की थी। तुम मेरे लिए थोड़ा पानी ले आओ। 'तो बुद्ध वृक्ष के नींचे विश्राम करते हैं और आनंद चला जाता है नदी पर लेकिन अब यह कठिन है, क्योंकि जैसे ही वह उसके नजदीक पहुंचता है, तो कुछ बैलगाड़ियां नदी पर से गुजर जाती हैं। नदी बहुत उथली और छोटी है। बैलगाड़ी गुजरने के कारण वह बहुत गंदी हो गयी है। वह सारी धूल जो नीचे बैठ गयी थी, सतह पर आ गयी है - पुराने सूखे पत्ते और हर प्रकार का कूड़ा-कचरा वहां है। पानी पीने योग्य नहीं। आनंद वही कुछ करने की कोशिश करता है, जो कि तुम करोगे वह नदी में प्रवेश करता है और चीजों को ठहराने की कोशिश करता है, जिससे कि पानी फिर से स्वच्छ हो जाए। वह उसे और ज्यादा गंदा कर देता है। करना क्या होगा? वह वापस चला आता है और वह कहता है, 'पानी पीने के योग्य नहीं। मैं आगे की एक खास नदी जानता हूं। मैं जाऊंगा और वहां से पानी ले आऊंगा। 'लेकिन बुद्ध जोर देते हैं। वे कहते हैं, तुम वापस जाओ मुझे उसी नदी का पानी चाहिए। जब बुद्ध जोर देते हैं, तो क्या कर सकता है आनंद? बेमन से वह फिर वापस चला जाता है। अचानक वह सार को समझ लेता है, क्योंकि जब तक वह पहुंचता है, आधी गंदगी फिर से बैठ चुकी होती है। किसी के दद्वारा उसे ठहराने की कोशिश किए बिना, वह अपने से ही नीचे बैठ चुकी है। वह समझ गया बात । - तो फिर वह बैठ गया वृक्ष के नीचे और वह देखता था नदी को बहते हुए, क्योंकि आधी मिट्टी अ भी बाकी थी वहां, कुछ सूखे पत्ते अभी भी सतह पर बचे थे। उसने प्रतीक्षा की। वह करता रहा प्रतीक्षा और देखता रहा और कुछ नहीं किया उसने। जल्दी ही, पानी स्फटिक जैसा हो गया था। झर गए मुर्दा पत्ते जा चुके थे और मिट्टी फिर से तल पर जम चुकी थी। वह दौड़ता हुआ और नाचता हुआ वापस लौटा। वह गिर पड़ा बुद्ध के चरणों पर और वह बोला, मैं अब समझता हूं और यही गलती तो मैं अपने मन के साथ करता रहा अपनी जिंदगी-भर । अब बस मैं बैठ जाऊंगा वृक्ष के नीचे और गुजरने दूंगा मन के प्रवाह को इसे स्वयं ही ठहर जाने दूंगा। अब मैं कूदूंगा नहीं नदी में और नहीं कोशिश करूंगा चीजों को जमाने की कोई क्रमबद्धता लाने की 1 कोई नहीं ला सकता मन में क्रमबद्धता व्यवस्था, क्रमबद्धता लाना ही अराजकता निर्मित कर देता है। यदि तुम देख सको और प्रतीक्षा कर सकी और तुम देख सकते हो तटस्थ रूप से, तो चीजें अपने से ठहर जाती हैं। एक निश्चित नियम होता है; चीजें बहुत समय तक अस्थिर नहीं बनी रह सकतीं, क्योंकि अस्थिर अवस्था स्वाभाविक नहीं होती वह अस्वाभाविक होती है। चीजों की स्थिर अवस्था स्वाभाविक होती है; चीजों की अस्थिर अवस्था नहीं होती है स्वाभाविक। इसलिए अस्वाभाविक बात घट सकती है कुछ समय तक तो, तो भी वह सदा बनी नहीं रह सकती है। तुम्हारी जल्दबाजी में, तुम्हारी अधीरता में तुम चीजों को ज्यादा गलत बना सकते हो।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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