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________________ अर्थ पूरब कहता है, 'कमल की भांति हो जाओ, इतना भर ही अनछुए बने रही और तुम हो जाते हो नियंत्रण में अनछुए बने रहो और तुम हो जाते हो मालिक।' इससे पहले कि हम पतंजलि के सूत्रों में प्रवेश करें, मन के संबंध में थोड़ी और बातें समझ लेनी हैं। एक दृष्टि से तो, मन लहरों की भांति है - एक अशांति ! सागर होता है शात और मौन, अनुत्तेजित; लहरें वहां नहीं हैं या सागर अशांत होता है ज्वार से या तेज हवा से, जब प्रबल लहरें उठती हैं और सारी सतह बिखरती हुई एकदम अराजक हो उठती है। ये सारे रूपक, सारे प्रतीक मात्र यह समझने में तुम्हें मदद देने को हैं कि भीतर एक सुनिश्चित गुणवत्ता है, स्वभाव है जिसे शब्दों द्वारा नहीं बतलाया जा सकता। रूपक या प्रतीक काव्यमय होते हैं। यदि तुम सहानुभूति द्वारा उन्हें समझने की कोशिश करते हो, तो तुम समझ प्राप्त कर लोगे लेकिन तुम तार्किक ढंग से उन्हें समझने की कोशिश करते हो, तो तुम सार ही चूक जाओगे। वे प्रतीक यदि हैं। मन चेतना की अशांति है, जैसे कि लहरों से सागर हो जाता है अशात। कोई बाहरी चीज प्रवेश कर जाती है हवा कुछ बाहर का घट गया होता है सागर को या कि घट गया होता है चेतना को विचार - , होते हैं या कि हवा, और वहां चली आती है बेचैन अराजकता। लेकिन अराजकता सदा होती है सतह पर ही लहरें होती हैं सदा सतह पर ही गहराई में लहरें कहीं नहीं होती। वहां हो नहीं सकती क्योंकि गहराई में हवा प्रवेश नहीं कर सकती। तो हर चीज केवल सतह पर ही होती है। यदि तुम भीतर की ओर बढ़ते हो, तो नियंत्रण उपलब्ध हो जाता है। यदि तुम सतह से भीतर की ओर बढ़ते हो, तो जा पहुंचते हो केंद्र तक अकस्मात सतह हो जाती होगी अशात, लेकिन तुम नहीं होते अशात । , सारा योग कुछ नहीं है सिवाय केंद्रस्थ होने के केंद्र की ओर बढ़ने के, वहां बद्धमूल हो जाने के, वहीं अवस्थित हो जाने के। और वहां से सारा परिप्रेक्ष्य बदल जाता है। हो सकता है लहरें वहां अब भी हों, लेकिन वे पहुंचती नहीं हैं तुम तक और अब तुम देख सकते हो कि वे तुमसे संबंधित नहीं हैं; वह तो केवल सतह पर का संघर्ष होता है किसी बाहरी वस्तु के साथ। और जब तुम देखते हो केंद्र की ओर से तो धीरे-धीरे, तुम विश्राम करने लगते हो। धीरे-धीरे तुम स्वीकार लेते हो कि बेशक तेज हवा ही है, लहरें तो उठेगी, लेकिन तुम्हें चिंता नहीं रहती । और जब तुम चिंतित नहीं होते तो लहरों पर भी आनंदित हुआ जा सकता है। कुछ गलत नहीं है उनमें। समस्या उभरती है क्योंकि तुम भी सतह पर ही होते हो। तुम सतह पर एक छोटी-सी नाव पर सवार होते हो; तेज हवाएं चली आती हैं, और होता है ऊंचे ज्वार का बहाव; और सारा सागर उन्मत्त हो जाता है। निस्संदेह, तुम चिंतित हो जाते हो, भय के मारे मृत्यु दिखने लगती है तुम्हें तुम खतरे होते हो। किसी क्षण लहरें तुम्हारी छोटी-सी नाव को फेंक सकती हैं। किसी क्षण मृत्यु घटित हो सकती है। अपनी छोटी सी नाव को लिए क्या कर सकते हो तुम? कैसे रख सकते हो तुम नियंत्रण -
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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