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________________ मन उस ढंग से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। मन होता ही नहीं, और कोई है नहीं उसे नियंत्रित करने को। आतंरिक शून्यता देख सकती है, पर नियंत्रण नहीं कर सकती। लेकिन देखना ही नियंत्रण है। देखने की, साक्षी की वह घटना ही बन जाती है नियंत्रण, क्योंकि मन तिरोहित हो जाता है। यह ऐसे है जैसे किसी अंधेरी रात को, तुम बहुत तेज दौड़ रहे होते हो क्योंकि तुम डर गए हो कि कोई तुम्हारे पीछे आ रहा है, और वह कोई और नहीं सिवाय तुम्हारी अपनी छाया के। जितना तुम भागते हो, छाया उतनी ही ज्यादा निकट होती है तुम्हारे। चाहे जितना तेज तुम भागो, कोई अंतर नहीं पड़ता, छाया वहां मौजूद होती है। जब कभी तुम पीछे देखते हो, छाया को पाते हो। यह कोई तरीका नहीं उससे बचने का और यह नहीं है तरीका उसे नियंत्रित करने का। तुम्हें ज्यादा गहरे देखना होगा छाया में। निष्कंप खड़े रहो और छाया में गहरे झांको और छाया तिरोहित हो जाती है। छाया होती नहीं; वह तो मात्र अनुपस्थिति है प्रकाश की। मन कुछ नहीं है सिवाय तुम्हारी मौजूदगी के अभाव के। जब तुम चुपचाप बैठे होते हो, जब तुम मन में गहरे देखते हो, तो मन बिलकुल तिरोहित हो जाता है। विचार बने रहेंगे, वे अस्तित्वगत होते हैं, लेकिन मन कहीं नहीं होगा। और जब मन जा चुका होता है तो दूसरा बोध संभव होता है; तुम देख सकते हो कि विचार तुम्हारे नहीं होते। निस्संदेह, वे चले आते हैं। कई बार वे थोड़ी देर आराम करते हैं तुममें र और फिर वे चले जाते हैं। तुम ठहरने का विश्राम-स्थल हो सकते हो, लेकिन वे तुममें से नहीं उमगते। क्या तुमने कभी ध्यान दिया है कि एक भी विचार तुम्हारे अस्तित्व में से नहीं आया होता। वे सदा बाहर से आते हैं। वे तुमसे संबंधित नहीं होते। जडविहीन, गृहविहीन, वे मंडराते रहते हैं। कई बार वे तुममें ठहर जाते हैं विश्राम करने को, बस इतना ही। बादल की भांति पहाड़ की चोटी पर विश्राम करते हुए वे सरकेंगे अपने से ही। तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं है। यदि तुम केवल देखते हो, तो नियंत्रण उपलब्ध हो जाता है। 'नियंत्रण' शब्द कोई बहुत ठीक नहीं। क्योंकि शब्द हो नहीं सकते बहुत ठीक। शब्दों का संबंध मन से होता है, विचारों के संसार से होता है। शब्द बहुत-बहुत सूक्ष्म, गहरे उतरने वाले हो नहीं सकते; वे उथले होते हैं। नियंत्रण शब्द ठीक नहीं क्योंकि कोई नहीं होता नियंत्रण करने को और कोई नहीं होता नियंत्रित होने को। लेकिन प्रारंभिक रूप में, यह मदद करता है उन कुछ निश्चित चीजों को समझने में जो कि घटती हैं। जब तुम गहराई से देखते हो, तो मन नियंत्रित होता है। अचानक तुम मालिक बन गये हो। विचार होते हैं वहां, पर वे तुम्हारे मालिक नहीं होते। वे कुछ कर नहीं सकते तुम्हारे प्रति, वे केवल आते हैं, और चले जाते हैं। तुम अनछुए ही रहते हो बरसते जल में कमल की भांति : जल की बूंदें पंखुड़ियों पर गिरती हैं, लेकिन वे फिसलती जाती हैं, वे छूती भी नहीं। कमल अनछुआ ही बना रहता है। इसीलिए पूरब में कमल इतना ज्यादा अर्थपूर्ण बन गया है, इतना अधिक प्रतीकात्मक। सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीक जो पूरब से आया है वह कमल ही है। वह समाए हुए है पूरब की चेतना का संपूर्ण
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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