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________________ नहीं रहती उसकी। और फिर, धीरे-धीरे दूसरे प्रकार का स्वप्न तिरोहित हो जाता है, क्योंकि तुम इच्छाओं में नहीं जीते। वह आदमी जो जागरूक होता है, आवश्यकताओं में जीता है, इच्छाओं में नहीं। इसलिए कोई जरूरत नहीं होती किसी आकांक्षापूर्ति की। उसके पास कुछ होता नहीं, अत: वह स्वप्न में किसी देश का राष्ट्रपति कभी नहीं बनता है। उसकी कोई इच्छा नहीं, कोई आकांक्षा नहीं। वह बहुत साधारण ढंग से जीता है। जीवन का स्वाभाविक प्रवाह ही पर्याप्त होता है। भोजन करते हुए परितृप्त अनुभव करता है; पानी पीता है, परितप्त अनुभव करता है; अच्छी नींद सोता है तो उतना पर्याप्त होता है; ज्यादा की मांग नहीं की जाती है। फिर तीसरे प्रकार का स्वप्न तिरोहित हो जाता है। पहले दो प्रकारों के तिरोहित होने से चेतन और अचेतन इतने ज्यादा निकट आ जाते हैं कि स्वप्न में कुछ संप्रेषित करने की कोई जरूरत नहीं रहती। वस्तुत: अचेतन संपर्कित होने लगता है जब तुम पूरी तरह जागरूक होते हो। तब चीजें सीधी-साफ हो जाती हैं; संप्रेषण सही हो जाता है। तब चौथे प्रकार का स्वप्न तिरोहित हो जाता है। जब तुम अपने जीवन में, इतने चैन से भर जाते हो, जाग्रत हो जाते हो, संपूर्णतया परितृप्त हो जाते हो, तो अतीत पूरी तरह गिर जाता है। तुम्हें अतीत में जाने की कोई जरूरत नहीं रहती। तुम इसी क्षण में जीते हो; अतीत तिरोहित हो जाता है, और तब पांचवीं प्रकार का स्वप्न तिरोहित हो जाता है। तुम इतनी समग्रता से इसी क्षण में जीते हो, तुम इतने जाग्रत होते हो, इतने पूर्णरूप से जाग्रत कि तुम्हारे लिए कोई भविष्य नहीं बचता। और जब सभी पांचों प्रकार के स्वप्न तिरोहित हो जाते हैं; तो अवास्तविकता मिट चुकी होती है, भ्रम तिरोहित हो चुके होते हैं। अब पहली बार तुम उपलब्ध करते हो वास्तविक के बोध को, ब्रह्म को। आज इतना ही। प्रवचन 23 - सवितर्क समाधि: परिधि और केंद्र के बीच दिनांक 3मार्च 1975; श्री रजनीश आश्रम पूना।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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