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________________ इसके बारे में बोला नहीं, क्योंकि इसकी अलग गुणवत्ता होती है जागरूकता की गुणवत्ता; वह भी स्वप्न ही है। जाग्रत जीवन भी एक विशाल स्वप्न होता है। लेकिन दिव्य-दर्शन में गुणवत्ता होती है जाग्रत जीवन की। कई बार मैं आता हूं तुम्हारे पास, पर बहुत कम, क्योंकि तुम्हें अर्जित करना होता है इसे। यदि तुम मुझे देखते हो सौ बार, तो निन्यानबे बार यह उन पांच प्रकार के सपनों की ही कोई बात होगी। लेकिन सौवीं बार मैं आता हूं तुम्हारे पास जब तुमने अर्जित किया होता है उसे। तब वह होता है दर्शन ही। लेकिन धीरे-धीरे तुम्हें सचेत हो जाना होगा कि कौन-सी चीज क्या होती है। बिलकुल अभी तो मैं तुम्हें कसौटी नहीं दे सकता यह आकने की, कि कौन चीज क्या है। तुम्हें स्वयं ही स्वाद लेना पड़ेगा उनका। तो पहले जब जागरूक हो जाना, जबकि तुम जागे हुए होते हो, दिन में। जागरूकता जबकि तुम जागे हए. होते हो, दिन में। जागरूकता की अधिकाधिक ऊर्जा एकत्रित करना। इसे इतनी उमड़ती हई धारा बना लेना कि जब तुम सोते हो तो तुम्हारा शरीर सोता है, तुम्हारा मन सोता है, तो भी वह ऊर्जा, जागरूकता की वह धार इतनी शक्तिशाली रहे कि वह जारी रहे। तब तुम भेद समझ पाओगे। और जब कोई सपनों के भेद समझने योग्य हो जाता है, तो वह एक बड़ी उपलब्धि होती है। फिर, धीरे- धीरे, कूड़ा-करकट छंट जाता है। पहली प्रकार के स्वप्न तिरोहित हो जाते हैं, क्योंकि जागरूक व्यक्ति दिन में इतनी संपूर्णता से जीता है कि वह कूड़ा एकत्रित नहीं करता है। कूड़ाकरकट एक अधूरा अनुभव होता है। तुम खा रहे थे, भोजन स्वादिष्ट था, लेकिन तुम बहुत ज्यादा न खा सके क्योंकि तुम मेहमान थे। क्या सोचते होंगे लोग? अधूरा अनुभव अब कूड़ा हो गया। अब रात तुम फिर खाओगे। तुम्हें अनुभव को संपूर्ण करना ही होगा, अन्यथा मन और आगे – आगे चलता चलेगा। मन किसी अधूरी चीज को पसंद नहीं करता। मन पूर्णतावादी होता है : कोई अधूरी चीज उसे पसंद नहीं। यदि एक दात गिर जाता है तो जीभ फिर-फिर वहीं जाती है क्योंकि कोई चीज अधूरी होती है। अब मन निरंतर वहीं रहेगा। यह बेतुकी बात है क्योंकि मात्र जीभ से छू लेने द्वारा, कुछ घटने वाला नहीं, लेकिन मन कोशिश करेगा बार-बार। पहले ऐसी कोशिश कभी न की गयी थी जब कि दात था, लेकिन अब कुछ अधूरा हो जाता है। थी जब कि दात वहां मनसविद कहते हैं, बंदर तक भी-क्योंकि उनके भी तुम्हारी तरह के ही मन होते हैं यदि तुम आधावर्तुल बनाते हो और चाक वहीं छोड़ देते हो, तो वे वर्तुल को पूरा कर देंगे। बंदर! क्योंकि वे बरदाश्त नहीं कर सकते अधूरे वर्तुल को, वे उसे तुरंत पूरा कर देंगे। मन सदा कोशिश कर रहा होता है चीजों को पूरा करने की। जब तुम जागरूक हो जाते हो तो पहली प्रकार का स्वप्न तिरोहित हो जाता है। तुम जीवन को इतने संपूर्ण रूप से जीते हो कि कोई जरूरत
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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