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________________ (सा होता है, ऐसा होगा ही। और ध्यान रहे कि तुम्हें खुश होना चाहिए कि ऐसा हुआ है। यह अच्छा लक्षण है। जब कोई चलना शुरू करता है अंतर्यात्रा पर तो हर चीज जान पड़ती है सीधी -साफ, बद्धमूल, क्योंकि अहंकार नियंत्रण में होता है और अहंकार के पास सारी रूपरेखाएं होती हैं, अहंकार के पास सारे नक्शो होते हैं, अहंकार मालिक होता है। जब तुम कुछ और आगे बढ़ते हो इस यात्रा में, तो अहंकार वाष्पित होने लगता है, और - और झूठा जान पड़ने लगता है, और अधिक धोखा मालूम पड़ने लगता है, एक भ्रम। तुम जागने लगते हो स्वप्न में से, तब सारे नक्शे-ढांचे खो जाते हैं। अब वह पुराना मालिक कोई मालिक नहीं रहता, और नया मालिक अभी तक आया नहीं होता। एक उलझन होती है, एक अराजकता। यह एक अच्छा लक्षण होता आधी यात्रा पूरी हुई, लेकिन एक बेचैन अनुभूति तो आ बनेगी, एक घबड़ाहट, क्योंकि तुम खोया हुआ अनुभव करते हो, स्वयं के प्रति अजनबी, न जानते हुए कि तुम कौन हो। इससे पहले, तुम जानते थे कि तुम कौन हो. तुम्हारा नाम, तुम्हारा रूप, तुम्हारा पता, तुम्हारा बैंक –खाता-हर चीज निश्चित थी, इस तरह तुम थे। तुम्हारा तादात्म्य था अहंकार के साथ। अब अहंकार विलीन हो रहा है, पुराना घर गिर रहा है और तुम नहीं जानते? तुम कौन हो, तुम कहां हो। हर चीज अंधेरे में घिरी होती है, धुंधली होती है और वह पुरानी सुनिश्चितता खो जाती है। यह अच्छा है क्योंकि पुरानी निश्चितता एक झूठी निश्चितता थी। वस्तुत: वह निश्चितता थी ही नहीं। इसके पीछे गहरे में अनिश्चितता ही थी। इसीलिए, जब अहंकार विलीन होता है, तुम अनिश्चित अनुभव करते हो। अब तुम्हारे अस्तित्व की ज्यादा गहरी परतें उदघाटित हो जाती हैं तुम्हारे सामने -तुम अजनबी अनुभव करते हो। तुम सदा अजनबी थे। केवल अहंकार ही इस अनुभूति के धोखे में ले गया कि तुम जानते थे तुम कौन हो। स्वप्न बहुत ज्यादा था, वह एकदम सत्य जान पड़ता था। सुबह जब तुम स्वप्न से जाग रहे होते हो, अचानक, तो तुम नहीं जानते कि तुम कौन हो और कहां हो। क्या तुमने इस अनुभूति को अनुभव किया किसी सुबह? –जब अचानक, तुम स्वप्न से जागते हो और कुछ पलों तक तुम नहीं जानते कि तुम कहां हो, तुम कौन हो और क्या हो रहा है? ऐसा ही होता है जब कोई अहंकार के स्वप्न से बाहर आता है। असविधा, बेचैनी, उखडाव महसूस होगा, लेकिन इससे तो प्रफुल्लित होना चाहिए। यदि तुम इससे दुखी हो जाते हो, तो तुम उन्हीं पुराने ढर्से में जा पड़ोगे जहां कि चीजें निश्चित थीं, जहां हर चीज का नक्शा बना था, खाका खिंचा था, जहां कि पहचानते थे हर चीज, जहां जीवन-मार्ग की रूपरेखाएं स्पष्ट थीं। बेचैनी गिरा दो। यदि वह हो भी तो उससे ज्यादा प्रभावित मत हो जाना। रहने दो उसे, ध्यानपूर्वक देखो और वह भी चली जाएगी। बेचैनी जल्दी ही तिरोहित हो जाएगी। वह वहां होती है निश्चितता की
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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