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________________ जहां कहीं से भी तुम प्रारंभ करना चाहो, तुम कर सकते प्रारंभ दाएं बाएं, या मध्य से, हिंदू मुसलमान, ईसाई, जैन, पुरुष स्त्री, ज्ञान - - अज्ञान, प्रेम - घृणा - हर चीज पहुंचा देती दुख तक। यदि क्रोध में होते हो, तो वह तुम्हें ले जाता है दुख की ओर । यदि तुम क्रोधित नहीं होते, वह बात भी ले जाती है दुख की ओर। ऐसा जान पड़ता है कि दुख मौजूद होता है और जो कुछ तुम करते हो वह अप्रासंगिक होता है। अंततः तुम आ पहुंचते हो उसी तक। मैंने सुनी है एक कथा, और मुझे सदा ही प्यारी रही है यह । एक मनोविश्लेषक एक पागलखाना देखने गया था। उसने एक पागल के बारे में पूछा सुपरिन्टेंडेंट से जो कि चीख रहा था और रो रहा था और पटक रहा था अपना सिर दीवार पर उसके हाथ में किसी सुंदर स्त्री की तस्वीर थी। पूछा उस मनोविश्लेषक ने 'क्या हुआ है इस आदमी को ? सुपरिन्टेंडेंट ने कहा, 'यह आदमी इस स्त्री को बहुत प्रेम कर रहा था। यह पागल हुआ क्योंकि वह स्त्री इससे विवाह करने को राजी नहीं हुई। इसलिए ही यह पागल हो गया है। ' तर्कयुक्त, सीधी-साफ बात। लेकिन उससे अगले कमरे में एक और पागल था और वह भी चीख रहा था और रो रहा था और पीट रहा था अपना सिर उसके हाथ में उसी स्त्री की तस्वीर थी, और वह थूक रहा था तस्वीर पर और बोले जा रहा था अश्लील शब्द। पूछा मनोविश्लेषक ने, 'क्या हुआ इस आदमी को ? इसके पास वही तस्वीर है। बात क्या है? सुपरिटेंडेंट बोला, 'यह आदमी भी इस स्त्री के प्रेम में पागल था, और वह मान गई और विवाह कर लिया इससे । इसलिए यह हुआ है पागल ।' स्त्री अस्वीकार करती है कि स्वीकार इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता है; तुम विवाह करो या कि तुम विवाह न करो, इससे कुछ अंतर नहीं पड़ता। मैंने गरीब लोगों को दुखी होते देखा है, मैंने अमीर लोगों को दुखी होते देखा है। मैंने असफल लोगों को दुखी पाया है, जो सफल हुए मैंने उन्हें दुखी पाया है। जो कुछ भी तुम करते हो, अंततः तुम आ पहुंचते हो लक्ष्य तक ! और वह है दुख । क्या हर रास्ता नरक तक ले जाता है? बात क्या होती है? तब तो कहीं कोई विकल्प नहीं जान पड़ता । हां, हर चीज ले जाती है दुख में यदि तुम वैसे ही बने रहो तो मैं तुमसे कहूंगा दूसरी बात यदि तुम बदल जाते हो तो हर चीज ले जाती है स्वर्ग में। यदि तुम वैसे के वैसे ही बने रहते हो, तो तुम्हीं रहते हो आधार, न कि जो तुम करते हो। जो तुम करते हो वह तो अप्रासंगिक होता है। गहराई में तुम्हीं होते हो चाहे तुम घृणा करो तुम्हीं करोगे घृणा, या कि तुम प्रेम करो तुम्ही करोगे प्रेम वह तुम्हीं होते जो अंततः दुख या सुख की, पीड़ा या आनंद की घटना निर्मित करते हो जब तक कि तुम्हीं नहीं बदल जाते ..... मात्र घृणा से प्रेम तक जाना, इस स्त्री से उस स्त्री तक इस घर से उस घर तक जाना - यह बात मदद न देगी। तुम समय और ऊर्जा बरबाद कर रहे होते हो। तुम्हें बदलना होता है स्वयं को क्यों हर चीज ले जाती है। दुख मै?
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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