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________________ दुख का कारण ढूंढने के लिए, तुम्हें उससे बचना छोड़ना होता है। कोई चीज तुम कैसे जान सकते हो यदि तुम उससे बचते रहते हो तो? कैसे जान सकते हो तुम कोई चीज यदि तुम बच कर निकल भागते हो? यदि तुम जानना चाहते हो कोई चीज, तो तुम्हें एकदम सामने हो साक्षात्कार करना होता है उससे। जब कभी तुम दुखी होते हो, तुम आशा करने लगते हो, आने वाला कल तुरंत ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है आज से। यह होता है बच निकलना। तुम भागे हो बच कर और अब आशा काम कर रही है नशे की भांति। तुम दुखी हो, तो तुम नशा करते हो और तुम भूल जाते हो। अब तुम नशे में मदमस्त होते हो, आशा के नशे में। आशा जैसा कोई नशा नहीं है। किसी मारिजुआना, किसी एल एस डी की कोई तुलना ही नहीं इसके साथ। आशा एक परम एल एस डी है। आशा के कारण ही तुम सह सकते हो हर चीज, हर एक चीज। हजारों नरक भी कुछ नहीं। आशा का यह रचना -तंत्र कैसे काम करता है? जब कभी तुम दुखी होते हो, उदास, निराश होते हो, तो तुम तुरंत बचना चाहते हो इससे, तुम इसे भुलाने की कोशिश करते हो। इसी तरह चलती चली जाती है यह बात। अगली बार जब तुम दुखी होओ -और तुम्हें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी, जैसे ही मेरा प्रवचन समाप्त होगा तुम हो जाओगे वैसे ही-तब भागने की कोशिश मत करना। मेरा प्रवचन भी शायद एक बचाव की भांति ही कार्य कर रहा हो -तुम सुनते हो मुझे, तुम भूल जाते हो स्वयं को। तुम सुनते हो मुझे, तुम्हें ध्यान देना पड़ता है मेरी ओर, लेकिन तुम्हारे स्वयं की ओर पीठ मोड़ लेते हो तुम। तुम भूल जाते हो, तुम भूल जाते हो कि तुम्हारी वास्तविक स्थिति क्या है। मैं बात करता हूं आनंद की, आनंदविभोरता की। वह बात सत्य होती है मेरे लिए, लेकिन तुम्हारे लिए वह बन जाती है एक स्वप्न। फिर एक आशा बन जाती है कि यदि तुम ध्यान करो, यदि तुम इस पर काम करो, तो ऐसा तुम्हें भी घटेगा। मत उपयोग करना इसका नशे की भांति। तुम गुरु का उपयोग कर सकते हो नशे की भांति, और तुम पर असर हो सकता है। मेरा सारा प्रयास है तुम्हें ज्यादा जागरूक बना देने का, ताकि जब कभी तुम दुख में पड़ो तो भागने की कोशिश मत करो। आशा शत्रु है। आशा मत करो, और यथार्थ से विपरीत स्वप्न मत देखो। यदि तुम उदास हो, तो उदासी ही होती है वास्तविकता। उसी के साथ रहो; उसी के साथ रह कर, आगे न बढ़, उसी पर एकाग्र हो जाओ। सामना करो उसका, होने दो उसे। उसके विपरीत मत जाना। शुरू में यह एक बहुत कडुआ अनुभव होगा, क्योंकि जब तुम सामना करते हो उदासी का, तो वह तुम्हें घेर लेती है हर तरफ से। तुम बन जाते हो छोटे –से द्वीप की भांति और उदासी होती है चारों ओर का समुद्र-और इतनी बड़ी लहरें होती हैं उदासी की! भय लगने लगता है, एक कंपन महसूस एकदम अंतस तक ही। कांपो, भयभीत होओ। एक बात मत करना-भागना मत। ऐसा होने दो। इसमें गहरे रूप से उतरो। देखो, ध्यान दो, मूल्याकन मत करो। तुम वैसा करते रहे लाखों जन्मों से। केवल देखो, उतरो उसमें। जल्दी ही, कडुआ अनुभव उतना कडुआ न रहेगा। जल्दी ही, कडुवे साक्षात्कार से उदित हो जाता है सत्य। जल्दी ही तुम गतिमान हो रहे होओगे, ज्यादा गहरे और गहरे में उतरते हुए और तुम ढूंढ लोगे कारण, कि दुख का कारण क्या है, क्यों तुम इतने दुखी हो।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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