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________________ द्रष्टा और दृश्य के बीच का संबंध, जो कि दुःख बनाता है, उसे तोड़ देना है। जीवन एक रहस्य है, और जीवन के बारे में पहली रहस्यभरी बात यह है कि तुम जीवित हो और हो सकता है तुम्हारे पास जीवन बिलकुल ही न हो। केवल जन्म लेना ही पर्याप्त नहीं होता है जीवन पाने के लिए जन्म लेना तो मात्र एक अवसर होता है तुम इसका उपयोग कर सकते हो जीवन पाने में, और तुम इसे चूक भी सकते हो। तब तुम एक मुरदा जीवन जीओगे। केवल बाहरी तौर से वह जीवन जैसा जान पड़ेगा, लेकिन गहरे तल पर तुममें कोई जीवंत तरंग न होगी। जीवन अर्जित करना पड़ता है, व्यक्ति को कार्य करना होता है उसके लिए वह तुममें पड़े बीज की भांति होता है उसे जरूरत है ज्यादा प्रयास की जमीन की ठीक मिट्टी की, ध्यान देने की प्रेम की, जागरूकता की केवल तभी बीज प्रस्फुटित होता है केवल तभी संभावना होती है कि किसी दिन वृक्ष में फल लगेंगे, किसी दिन उसमें फूल खिलेंगे। जब तक कि तुम पूरे खिलने की अवस्था तक नहीं पहुंच जाते, तब तक तो तुम कहने भर को ही जीवित होते, लेकिन तुमने खो दिया होता है अवसर । जब तक कि जीवन एक उत्सव नहीं बन जाता, वह जीवन होता ही नहीं । आनंद, निर्वाण, संबोधि जो कुछ भी तुम इसे कहना चाहो वही है परम विकास यदि तुम दुखी रहते हो तो तुम जीवित नहीं होते। वह दुख ही दिखाता है कि तुम चूक गए हो किसी चरण को वह दुख ही एक संकेत है कि जीवन भीतर संघर्ष कर रहा है विस्फोटित होने के लिए, लेकिन खोल बहुत कठोर है। बीज का आवरण उसे बाहर नहीं आने दे रहा होता; अहंकार बहुत ज्यादा होता है और द्वार बंद होते हैं। दुख और कुछ नहीं है सिवाय इस संघर्ष के कि जीवन फूट पड़े लाखों रंगों में लाखों इंद्रधनुष में, लाखों फूलों में, लाखों-लाखों गीतों में , दुख एक नकारात्मक अवस्था है। वस्तुतः दुख और कुछ नहीं सिवाय आनंद के अभाव के। इसे बहुत गहरे में समझ लेना है, अन्यथा तुम तो लड़ने लगोगे दुख के साथ और कोई लड़ नहीं सकता किसी अभाव के साथ, वह होता है बिलकुल अंधकार की भांति । तुम नहीं लड़ सकते अंधकार के साथ। यदि तुम लड़ते हो, तो एकदम मूढ ही होते हो तुम जला सकते हो दीया और अंधकार तिरोहित हो जाता है, लेकिन तुम लड़ नहीं सकते अंधेरे से किसके साथ लड़ोगे तुम? अंधकार अस्तित्वगत नहीं होता, वह होता ही नहीं। वह कोई ऐसी चीज नहीं कि जिसे तुम बाहर फेंक सको मार सको, या उसे पराजित कर सको। तुम अंधकार के विषय में कुछ नहीं कर सकते। यदि तुम करते हो कुछ तो तुम्हारी अपनी ऊर्जाएं ही नष्ट होंगी और अंधकार वहां बना रहेगा ठीक उसी तरह, ज्यों का त्यों यदि तुम अंधकार के विषय में कुछ करना चाहते हो, तो तुम्हें कुछ करना होता है प्रकाश के विषय में, अंधकार के विषय
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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