SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिली है वे भी कभी न जान पाएंगे कि वे मदद करते रहे हैं। इस बात ने तो मुसीबत खड़ी कर दी है अन्यथा, पश्चिम के सारे तथाकथित गुरु तो मात्र विक्रेता हैं; उनकी कोई योग्यता नहीं है। यदि तुम सद्गुरु खोज सको, तो वह सबसे अच्छा है, क्योंकि समूह में भी तुम कैदी ही रहोगे, गहरी नींद में पड़े हुए। तुम कर सकते हो कोशिश, लेकिन इसमें लंबा समय लगेगा। या यह बात बिलकुल ही सफल न होगी, क्योंकि तुम सभी की वही क्षमता होगी, उसी धरातल की चेतना होगी। उदाहरण के लिए 'आरिका' के लोग एक साथ काम करते हुए उसी चेतना-तल के लोग हैं, अंधेरे में टटोल रहे हैं। शायद कुछ हो जाए, शायद कुछ न हो एक बात तो निश्चित है, और वह है कि कुछ भी निश्चित नहीं । मात्र संभावना होती है। गुरजिएफ मौजूद नहीं और गुरजिएफ के सारे समूह गुरजिएफ से ज्यादा तो ऑस्पेंस्की की किताबों द्वारा प्रभावित हैं। वस्तुतः सारे समूह ऑस्पेंस्की के समूह हैं; वे ठीक गुरजिएफ के की तरह नहीं हैं। कुछ ज्यादा की संभावना नहीं है। तुम बात कर सकते हो सिद्धांतों की, तुम एक दूसरे को समझा सकते हो। लेकिन यदि तुम चेतना के उसी धरातल से संबंधित होते हो, तो ज्यादा बातचीत, ज्यादा बहस, ज्यादा ज्ञान घटेगा लेकिन बोध नहीं, जागरण नहीं। जब गुरजिएफ मौजूद था तो बिलकुल ही अलग थी बात - सद्गुरु मौजूद था। वह तुम्हें कैद से बाहर ला सकता था। समूह - पहली बात है गुरु को खोज लेना जो कि तुम्हारी मदद कर सकता हो। यदि गुरु को खोजना असंभव है, तो समूह का निर्माण कर लेना और सामूहिक प्रयास करना । अकेले की तो अल्पतम संभावना है। ये तीन ढंग हैं तुम काम करते हो अकेले, तुम काम करते हो समूह के साथ या तुम काम करते हो गुरु के साथ। श्रेष्ठ तो है गुरु के साथ काम करना, इससे कम श्रेष्ठ बात है समूह के साथ काम करना, तीसरी है अकेले की बात वे लोग भी जिन्होंने अकेले पाया है परम सत्य को बहुत जन्मों से कार्य करते रहे हैं गुरुओं के साथ और समूह के साथ इसलिए मत धोखा खाना ऊपरी ढंग से। कृष्णमूर्ति भी कहे चले जाते हैं कि अकेले तुम पा सकते हो। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी विधि एक अप्रत्यक्ष विधि है। वे तुम्हें न जानने देंगे कि वे मदद कर रहे हैं, और वे तुमसे नहीं कहेंगे, मुझे समर्पण कर दो।' पश्चिम में इतना ज्यादा अहंकार है और वे सारे समय कार्य करते रहे हैं पश्चिम में। अहंकार इतना ज्यादा है कि वे नहीं कह सकते, मुझे समर्पण कर दो, जैसा कि कृष्ण ने कहा अर्जुन से – 'हर चीज को छोड़ मेरी शरण आओ और मुझे समर्पण कर दो।' अर्जुन एक अलग संसार का था, पूरब का जो जानता है कि समर्पण कैसे होता है, जो जानता है अहंकार की असुंदरता को और समर्पण 7 की सुंदरता को कृष्ण कह सकते थे ऐसा बिना उनके किसी अहंकार के ऐसा कथन बहुत अहंकारयुक्त जान पड़ता है आओ और मुझे समर्पण कर दो।' लेकिन कृष्ण इसे सहज रूप से कह सके, और अर्जुन ने कभी प्रश्न नहीं उठाया कि 'आप क्यों कहते ऐसा? क्यों करूं मैं आपको समर्पण? कौन होते हो आप? पूरब में समर्पण स्वीकृत था जाने हुए मार्ग के रूप में हर कोई जानता था, इसी
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy