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________________ सकते इस कारण को अभिनिवेश में, जीवन की लालसा में, वह तो फूल है, फल है; अंतिम घटना है। वस्तुत: वह कारण नहीं है। पीछे जाओ।' पांचों क्लेशों के मूल कारण मिटाए जा सकते हैं उन्हें पीछे की ओर उनके उदगम विसर्जित कर देने से। एक बार तुम जान लेते हो कारण को, फिर हर चीज का समाधान हो जाता है। और कारण है जागरूकता का अभाव। करोगे क्या? मत लड़ना अपनी पकड़ से, मत लड़ना अपनी आसक्ति से और तुम्हारी अपनी घृणा से, अहंकार से भी मत लड़ना। बस ज्यादा और ज्यादा जागरूक हो जाना। केवल ज्यादा और ज्यादा सचेत हो जाना, ध्यानी, बोधपूर्ण हो जाना। ज्यादा-ज्यादा स्मरण रखना और सजग रहना। वही सजगता ही हर चीज तिरोहित कर देगी। एक बार कारण विलीन हो जाता है, तो कार्य तिरोहित हो जाते हैं साधारण नैतिकता तुम्हें सतह पर के परिवर्तन सिखाती है। तथाकथित धर्म तुम्हें सिखाते हैं कि कैसे परिणामों से लड़ना होता है। पतंजलि तम्हें दे रहे हैं धर्म का सच्चा विज्ञान - मल कारण ही विलीन हो सकता है। तुम्हें ज्यादा सजग होना होता है। जीवन को जीयो सजगता के साथ : वही है कुल संदेश। सोए हुए मनुष्य की भाति मत जीयो, या कि सम्मोहन में जी रहे शराबी की भांति मत जीयो। जो कुछ तुम कर रहे हो उसके प्रति होश रखो। करो उसे, लेकिन करना उसे परे होश सहित। अकस्मात तुम पाओगे बहुत सारी चीजें तिरोहित हो जाती हैं। एक चोर आया एक बौद्ध रहस्यदर्शी नागार्जुन के पास। चोर कहने लगा, 'देखिए, मैं बहुत सारे शिक्षकों और गुरुओं के यहां हो आया। वे सब मुझे जानते हैं, क्योंकि मैं एक प्रसिद्ध चोर हूं इसलिए मैं सब जगह जाना जाता छु। जिस क्षण पहुंचता हूं उनके पास वे कहते हैं, पहले तो तुम्हें चोरी छोड़ देनी है, लोगों को लूटना छोड़ना है। पहले तुम्हारे जीवन का ढंग गिरा दो और फिर कुछ घट सकता है। इसीलिए बात जहां की तहां समाप्त हो जाती है। अब मैं आया हूं आपके पास। आप क्या कहते हैं?' नागार्जुन ने कहा, 'तब तुम जरूर चोरों के पास गए होओगे, गुरुओं के पास नहीं। तुम्हारे चोरी करने या न करने की फिक्र गुरु को क्यों करनी? मेरा कुछ लेना-देना नहीं। तुम एक काम करो. 'तुम चोरी किए जाओ, लोगों को लूटते जाओ, लेकिन सजगता सहित ही लूटना उन्हें।' उस चोर ने कहा, ' ऐसा मैं कर सकता है। और वह पकड़ाई में आ गया, फंस गया। दो सप्ताह गुजरने के बाद, वह लौट कर आया नागार्जुन के पास और बोला, 'आप धोखेबाज हो, आपने चालाकी की मेरे साथ। कल रात मैं पहली बार राजा के महल में जा घुसा, लेकिन आपकी वजह से
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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