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________________ है मेरी मुसीबत. सारी जिंदगी मैं किसी दूसरे की भांति होने का प्रयास करता रहा। लेकिन कम से कम अब अंतिम घड़ी मुझे अकेला छोड़ दो, मुझे मुझ जैसा ही रहने दो, क्योंकि वही चेहरा मुझे परमात्मा को दिखाना चाहिए। और केवल वही चेहरा है जिसके लिए परमात्मा प्रतीक्षा कर रहा होगा। प्रामाणिक रूप से स्वयं जैसे हो जाओ तुम नकल नहीं कर सकते। धर्म प्रत्येक को अद्वितीय बना देता है। कोई भी गुरु जो कि सच्चा गुरु है इस पर जोर नहीं देगा कि तुम उसकी नकल करो। वह तुम्हें स्वयं जैसा होने में तुम्हारी मदद करेगा, वह उसी के जैसा होने के लिए तुम्हारी मदद नहीं करेगा। और सारी सभ्यता एक नकल है। सारा समाज नकल करने वाला है। इसीलिए सारा समाज सत्य की अपेक्षा एक नाटक की भाति है। हिंदू इसे कहते हैं, माया एक खेल, एक खेल-तमाशा, पर सत्य नहीं। माता-पिता बच्चों को उन्हीं के जैसा होने की सीख दे रहे हैं। हर कोई हर दूसरे को अपने जैसा करने के लिए धकेल रहा है और खींच रहा है चारों ओर पूरी अराजकता बनी है। , मैं ठहरा हुआ था एक परिवार के साथ, और मैं बैठा था लॉन पर घर का स्व छोटा बच्चा आया और मैं पूछने लगा, तुम अपने जीवन में क्या बनने की सोचते हो?' वह बोला, कहना मुश्किल है, क्योंकि मेरे पिता मुझे डाक्टर बनाना चाहते हैं। मेरी मां चाहती हैं कि मैं इंजीनियर बनूं; मेरे चाचा, वे चाहते हैं मैं एडवोकेट बनूं क्योंकि वे एक एडवोकेट हैं और मैं उलझन में हूं। मैं नहीं जानता कि मैं क्या बनूंगा।' मैंने पूछा उससे, 'तुम क्या बनना चाहते हो? वह बोला, 'पर यही तो मुझसे किसी ने पूछा ही नहीं।' मैंने कहा उससे, तुम सोचो इस बारे में कल तुम मुझे बताना। अगले दिन वह आया और वह बोला, 'मैं एक नृत्यकार होना चाहूंगा, लेकिन मेरी मां ऐसा न होने देगी, मेरे पिता ऐसा न होने देंगे।' वह कहने लगा मुझसे, मेरी मदद कीजिए, वे आपकी सुनेंगे।' हर बच्चा धकेला जा रहा है और खींचा जा रहा है कुछ और ही बनाये जाने के लिए। इसीलिए इ ज्यादा असुंदरता है चारों ओर कोई स्वयं जैसा नहीं यदि तुम संसार के सबसे बड़े इंजीनियर भी बन जाओ, तो वह बात भी कोई परितृप्ति न देगी, यदि वह तुम्हारी अपने मन की बात न रही हो। और मैं कहता हूं तुमसे, तुम शायद संसार के सबसे बड़े बेकार नृत्यकार होओगे, उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता । यदि वह तुम्हारी अपनी अंतःप्रेरणा थी, तो तुम प्रसन्न और परितृप्त रहोगे। मैंने है एक बड़े वैज्ञानिक के बारे में जिसे कि नोबल पुरस्कार मिला था। वह संसार के जाने सुना - माने बड़े -बड़े शल्यचिकित्सकों में से एक था। और जिस दिन उसे नोबल पुरस्कार मिला, किसी ने कहा, 'आपको तो खुश होना चाहिए। आप इतने उदास क्यों लग रहे हैं? यह सबसे बड़ा पुरस्कार है; सबसे बड़ा इनाम जिसे कि संसार तुम्हें दे सकता है सबसे बड़ा सम्मान। आप खुश क्यों नहीं हो? और आप तो संसार के सबसे बड़े शल्यचिकित्सकों में से हैं।' वह बोला, 'सवाल यह नहीं है, जब नोबल पुरस्कार मुझे दिया गया था, तो मैं अपने बचपन की बात सोच रहा था। मैं कभी भी सर्जन नहीं —
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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