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________________ समाज में।' फिर तुम कूच करना शुरू करते मोर्चा, घेराव सभी प्रकार की नासमझिया। तुम पकड़ लिए गए एक जाल में अब तुम बदलने ही वाले हो सारे संसार को । । लेकिन क्या तुम भूल गए कि कितने दिन जीने वाले हो तुम? और जब सारा संसार बदल जाता है, तो उस समय तक तुम नहीं रहोगे यहां तुम खो चुके होओगे तुम्हारा जीवन बहुत से मूर्ख लोग अपना सारा जीवन गंवा रहे हैं, इस या उस बात के विरुद्ध अभियान चला कर इसकी या उसकी खातिर; सारे संसार को रूपांतरित करने की कोशिश कर रहे हैं और उस एकमात्र रूपांतरण को स्थगित कर रहे हैं जो कि संभव है, और जो है आत्म-रूपांतरण। और मैं कहता हूं तुमसे, तुम अस्वतंत्र समाज में स्वतंत्र हो सकते हो, तुम सुखी हो सकते हो दुखी संसार में दूसरों की ओर से कोई बाधा नहीं है, तुम रूपांतरित हो सकते हो कोई तुम्हें नहीं रोक रहा, सिवाय तुम्हारे स्वय के। कोई व्यक्ति कोई बाधा नहीं बना रहा है। समाज की और संसार की फिक्र मत करो। क्योंकि संसार तो चलता रहेगा और वह ऐसा ही बना हुआ है हमेशा-हमेशा से बहुत सी क्रांतियां आती हैं और चली जाती हैं और संसार वैसा ही बना रहता है। । - - यदि सारे क्रांतिकारी अपनी कब्रों में से फिर जीवित किए जा सकते लेनिन और मार्क्स - वे विश्वास न कर पाते कि संसार वैसा ही बना हुआ है और क्रांति घट चुकी है। रूस में या कि अमरीका में कोई अंतर नहीं, बस एक औपचारिक सा अंतर है रूप भेद रखते हैं; आधारभूत सत्य वैसा ही बना रहता है, मनुष्य की मौलिक पीड़ा वैसी ही बनी रहती है। समाज कभी नहीं पहुंचेगा किसी आदर्श तक। वह शब्द 'यूटोपिया' बहुत सुंदर है। इस शब्द का अर्थ ही है कि जो कभी नहीं आता। शब्द यूटोपिया का अर्थ होता है कि जो कभी न आए। वह सदा आ रहा होता है, लेकिन वह आता कभी नहीं, वचन सदा होता है लेकिन चीजें कभी पहुंचाई नहीं जातीं और यह ऐसा ही रहेगा। ऐसा ही रहा है केवल एक संभावना है. तुम परिवर्तित हो सकते हो। : : राजनीति सामाजिक है, धर्म व्यक्तिगत होता है और जब कभी धर्म सामाजिक बनता है, वह राजनीति का हिस्सा होता है; वह धर्म नहीं रह जाता। इसलाम और हिंदू और जैन धर्म, वे राजनीतिया हैं। वे अब धर्म नहीं रहे; वे समाज हो गए हैं। यह एक व्यक्तिगत समझ होती है। हो, तुम तुम तुम्हारे गहनतम अंतर में जानते हो कि परिवर्तन की आवश्यकता है, जैसे तुम तुम गलत हो; जैसे तुम 'हो, तुम नरक बना रहे हो तुम्हारे चारों ओर, जैसे तुम हो, तुम बीज ही हो दुख का तुम इसे जानते हो तुम्हारी सत्ता के गहनतम गर्भ में, और वह जानना ही एक परिवर्तन बन जाता है। तुम गिरा देते हो बीज को; तुम बढ़ते हो एक अलग दिशा में। यह बात व्यक्तिगत होती है, यह कोई सांस्कृतिक बात नहीं होती।
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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