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________________ समायोजन का प्रश्न नहीं है; यह प्रश्न है उन सारे हिस्सों के समायोजन का जो तुम्हारी सारी सत्ता को बनाते हैं। स्वप्न महत्वपूर्ण होते हैं। यदि आदमी बीमार होता है, तो स्वप्न महत्वपूर्ण होते हैं -वे बीमारी के लक्षणों को दिखा देते हैं। लेकिन तुम उस व्यक्ति के बारे में नहीं जानते जिसके पास स्वप्न नहीं। स्वप्न अपने में एक रोगशास्त्र हैं, स्वप्न स्वयं एक रोग है। बुद्ध ने कभी स्वप्न नहीं देखे। फ्रायड ने क्या किया होता? यदि फ्रायड उस समय होता, तो उसने क्या किया होता बुद्ध के साथ? उनके विषय में उसने कौन सी व्याख्या की होती? व्याख्या करने को कुछ था ही नहीं। यदि फ्रायड बुद्ध के भीतर गया होता, तो उसने कोई चीज न पाई होती व्याख्या करने को। उसका सारा मनोविज्ञान बिलकुल ही व्यर्थ हो चुका होता। ऐसा हुआ कि अमरीका में एक व्यक्ति था जो कि बहुत ज्यादा कुशल था दूसरे व्यक्तियों के विचारों को पढ़ने में -मन को पढ़ लेता था। वह सदा सौ प्रतिशत सच ही कहता था। वह बैठ जाता तुम्हारे सामने, तुम आंखें बंद कर लेते और सोचने लगते, और वह आदमी अपनी आंखें बंद कर लेता और सोचने लगता कि तुम क्या सोच रहे हो। उस पल जो कुछ तुम सोचो वह विचार संप्रेषित हो जाता और वह उसे ग्रहण कर लेता। यह एक कला होती है। बहुत लोग जानते हैं इसे। यह सीखी जा सकती है, तुम पा सकते हो इसे, क्योंकि विचार एक सूक्ष्म तरंग है। यदि तुम ग्राहक होते हो तो दूसरा मस्तिष्क प्रसारण केंद्र बन जाता है, तुम ग्रहणकर्ता बन जाते हो। विचार एक प्रसारण है, क्योंकि व्यक्ति के चारों ओर की विदयुत में तरंगें उठती हैं, यदि तुम पर्याप्त रूप से शात होते हो, ग्राहक होते हो, तुम उन्हें पकड़ लोगे। जब मेहर बाबा अमरीका में थे, तो कोई ले आया उसी आदमी को मेहर बाबा के पास जो बहुत वर्षों तक रहे थे मौन में। वह आदमी बैठ गया मेहर बाबा के सामने, अपनी आंखें मूंद ली और ध्यान ही ध्यान करता गया। फिर-फिर वह आंखें खोल लेता अपनी, और देख लेता मेहर बाबा को। इसमें बहत देर होती गई, लोग चिंतित हो उठे। वे बोले, 'तुमने इतना समय तो कभी नहीं लिया। वह आदमी बोला, 'हा, तो क्या करूं? यह आदमी तो बिलकुल सोच ही नहीं रहा है। कोई विचार मौजूद नहीं।' यदि फ्रायड या का बुद्ध के पास होते, या यदि वे मेरे पास आ गए होते तो उन्होंने कुछ भी न पाया होता व्याख्यायित करने को, उन्होंने कोई विचार न पाया होता पकड़ने को। परब कहता है, 'स्वप्न स्वयं एक रोग है।' वह एक प्रकार की बीमारी है; वह एक अव्यवस्था है। जब तुम सचमुच ही मौन होते हो तो दिन का सोचना तिरोहित हो जाता है और रात के स्वप्न तिरोहित हो जाते हैं। विचार और स्वप्न एक ही चीज के दो पहलू हैं. दिन में जब कि तुम जागे हुए होते हो, तब विचार चलते रहते हैं, और रात को जब कि तुम सोए हुए होते हो, तो स्वप्न होते हैं। स्वप्न सोचने का एक आदिम ढंग है, चित्रों के रूप में सोचना, जैसा कि बच्चे सोचते हैं। इसलिए बच्चों की
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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