SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। वह जीता है साधारण, भयग्रस्त आदमी की भांति ही। वह बहुत भयभीत था प्रेतों से, और बहुत ईर्ष्यालु था, प्रतिस्पर्धा से भरा था। विवादी, झगड़ाल था। वस्तुत: पश्चिम जानता नहीं कि आत्म-साक्षात्कार क्या है, इसलिए कोई भी चीज आत्म-साक्षात्कार बन जाती है। पश्चिम जानता नहीं कि आत्म-साक्षात्कार का क्या अर्थ होता है। उसका अर्थ है इतनी परम शाति जो किसी चीज से बिगाड़ी न जा सके। ऐसा परम अन- अस्तित्व। मालकियत, महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या कैसे बनी रह सकती है उसमें? अ-मन के साथ कैसे तुम अधिकार जमा सकते हो, कैसे तुम शासन जमाने की कोशिश कर सकते हो न: आत्म-साक्षात्कार का अर्थ है-अहंकार का संपूर्ण तिरोहित हो जाना। और अहंकार के साथ, हर चीज तिरोहित हो जाती है। ध्यान रहे, अहंकार स्वप्नों की व्याख्या द्वारा तिरोहित नहीं हो सकता है। इसके विपरीत, अहंकार ज्यादा मजबूत हो सकता है, क्योंकि चेतन और अचेतन के बीच का अंतराल कम होगा। तुम्हारा अहंकार मजबूत हो जाएगा। जितनी कम तकलीफ होती है मन में, उतना ज्यादा मजबूत हो जाएगा मन। अहंकार के लिए तुम्हारे पास नई भूमि होगी, तो मनोविश्लेषण तुम्हारे लिए ऐसा कर सकता है कि तुम्हारा अहंकार ज्यादा जड़ पकड़ ले, ज्यादा केंद्र में आ जाए; तुम्हारा अहंकार ज्यादा मजबूत हो जाए; तुम ज्यादा निश्चयपूर्ण हो जाओ। निस्संदेह पहले की अपेक्षा तुम संसार में बेहतर ढंग से जी पाओगे, क्योंकि संसार अहंकार में विश्वास रखता है। जीवित रहने के संघर्ष में लड़ने के लिए तुम ज्यादा सक्षम हो जाओगे। तुम्हारे स्वयं के बारे में तुम ज्यादा आश्वस्त हो जाओगे, कम घबडाओगे। यदि तुम भ तर तकलीफ में हो और अचेतन भीतर निरंतर एक संघर्ष में हो, तो उस स्थिति की अपेक्षा अब तुम कुछ महत्वाकांक्षाओं को ज्यादा आसानी से पूरा कर पाओगे। लेकिन यह आत्मसाक्षात्कार नहीं है। इसके विपरीत यह तो अहंकार-साक्षात्कार है। पश्चिम का अब तक का सारा मनोविज्ञान निर- अहंकार के तत्व तक नहीं पहुंचा है। वह अब भी अहंकार की भाषा में ही सोचता रहा है, कि अहंकार को और ज्यादा मजबूत कैसे बनाया जाए; केंद्र में कैसे लाया जाए; अहंकार को कैसे ज्यादा पोषित, स्वाभाविक, समायोजित किया जाए। पूरब तो स्वयं अहंकार को ही एक रोग की भांति समझता है, सारा मन ही एक रोग है; उस के लिए कुछ चुनाव नहीं चेतन और अचेतन दोनों को जाने देना होता है। उन्हें चले ही जाना चाहिए और इसीलिए पूरब ने व्याख्या करने की कोशिश नहीं की है। क्योंकि यदि किसी चीज को जाना ही है तो क्यों उसकी व्याख्या की चिंता करनी; क्यों समय गंवाना; उसे हटाया जा सकता है। जरा भेद की ओर ध्यान देना, पश्चिम किसी न किसी भांति चेतन और अचेतन का समायोजन करने की और अहंकार को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, ताकि तुम समाज के ज्यादा अनुकूलित सदस्य बन जाओ, और भीतर भी ज्यादा अनुकूलित व्यक्ति बन जाओ। दरार जुड़ जाने से तुम्हें मन का मिल जाएगा। पूरब कोशिश करता मन को हटा देने की, उसके पार जाने की। यह समाज के. साथ अनुकूलित होने का प्रश्न नहीं है, यह स्वयं अस्तित्व के ही साथ समायोजित होने का प्रश्न है। यह चेतन और अचेतन के बीच के
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy