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________________ अच्छी पत्नी मिलती हैं तो तुम प्रसन्न रहोगे, और प्रसन्नता द्वारा बहुत सारी चीजें विकसित होती हैं, क्योंकि प्रसन्नता स्वाभाविक होती है। यदि तुम्हें बुरी पत्नी मिलती है, तब निरासक्ति, त्याग की भावना विकसित होगी। तुम मुझ जैसे महान दार्शनिक बन जाओगे। दोनों ही अवस्थाओं में तुम्हें लाभ होगा। जब तुम मेरे पास पूछने आए हो कि विवाह करूं या नहीं, तो विवाह का विचार तुममें है, वरना तुम मेरे पास आते ही क्यों? मैं कहां इस युवक से, 'तुम मुझसे पूछने आए हो। यह आना ही बतलाता है कि विवेकानंद पर्याप्त नहीं रहे, अभी भी तुम्हारा स्वभाव डोलता रहता है। तुम्हें विवाह कर लेना चाहिए। दुखी होओ उससे, आनंदित होओ उससे; पीड़ा और सुख दोनों में से गुजरो और परिपक्व हो जाओ अनुभव द्वारा। एक बार तुम पक जाते हो, इसलिए नहीं कि विवेकानंद या कोई दूसरा ऐसा कहता है, बल्कि इसलिए कि तुम प्रौढ़ और परिपक्व हो ही चुके हो, कामवासना की मूढ़ता गिर जाती है। वह गिर जाती है, तब ब्रह्मचर्य उदित होता है, सच्चा ब्रह्मचर्य उदित होता है, शुद्ध ब्रह्मचर्य उदित होता है, लेकिन यही तो है भेद ।' सदा स्मरण रखना कि तुम तुम हो, न तो तुम विवेकानंद हो और न तुम बुद्ध हो और न ही मुझ जैसे हो बहुत प्रभावित मत हो जाना, प्रभाव है अशुद्धता सचेत रहो, सजग रहो, ध्यान से देखो, और जब तक कोई चीज तुम्हारे स्वाभाव के अनुरूप नहीं बैठती, मत ग्रहण करो उसे वह तुम्हारे लिए नहीं होती या कि तुम उसके लिए तैयार ही नहीं होते। जो कुछ भी हो बात, इस क्षण तो वह चीज तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हें बढ़ना होता है तुम्हारे अपने अनुभव के द्वारा एक परिपक्वता तक प्रौढ़ता तक पहुंचने के लिए तुम्हें दुख की जरूरत होती है। तुम जल्दी में पड़कर कोई बात नहीं कर सकते। । जीवन अनंत है, उसमें कहीं कोई जल्दी नहीं समय की कमी नहीं है जीवन तो नितांत धैर्यवान है, वहां कोई अधैर्य नहीं। तुम बढ़ सकते हो, तुम्हारी अपनी गति से । शार्टकट्स की कोई जरूरत नहीं, कोई कभी सफल नहीं हुआ शार्टकट्स के द्वारा यदि तुम जल्दबाजी का रास्ता पकड़ते हो, तो कौन तुम्हें अनुभव देगा लंबी यात्रा का? तुम उसे चूक जाओगे और हर संभावना मौजूद है कि तुम वहीं लौट आओगे और सारी बात ही ऊर्जा और समय की क्षति बन जाएगी। शार्टकट्स सदा भ्रांतियां ही होते हैं। कभी मत चुनना शार्टकट सदा स्वाभाविक को ही चुनना हो सकता है इसमें ज्यादा समय लग जाएतो लगने दो। इसी भाति तो जीवन विकसित होता है, उसे जबरदस्ती लाया नहीं जा सकता। जब पतंजलि कहते हैं, 'शुद्ध को अशुद्ध समझ लेना अविद्या है, जागरूकता का अभाव है, तो शुद्धता का अर्थ होता है - तुम्हारी स्वाभाविकता, जैसे कि तुम हो -दूसरों के द्वारा प्रभावित नहीं, प्रदूषित नहीं । किसी को आदर्श मत बना लेना। बुद्ध की भांति होने की कोशिश मत करना; तुम केवल तुम्हारे जैसे हो सकते हो। यदि बुद्ध तुम जैसे होने की कोशिश करते, तो वैसा संभव न होता। कोई किसी दूसरे जैसा नहीं हो सकता। प्रत्येक का अपना होने का अनूठा ढंग होता है, और वही है शुद्धता तुम्हारे अपने अस्तित्व का अनुसरण करना, तुम्हारा स्वयं जैसा हो जाना शुद्धता है। यह बहुत कठिन है,
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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