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________________ जब पतंजलि कहते हैं, ' अशुद्ध को शुद्ध जानना अविद्या है, तो वे कह रहे हैं, ' अस्वाभाविक को स्वाभाविक जानना अविद्या है।' और तुम बहुत-सी अस्वाभाविक चीजों को स्वाभाविक मान लिए हो, तुम पूरी तरह भूल चुके हो कि स्वाभाविक क्या है। स्वाभाविक को पा लेने के लिए तुम्हें स्वयं में गहरे उतरना होगा। सारा समाज तुम्हें अस्वाभाविक बना देता है; वह तुम पर ऐसी चीजें लादता जाता है जो कि स्वाभाविक नहीं होती, वह तुम्हें एक ढांचे में खलता जाता है। वह तुम्हें देता चला जाता है आदर्श, सिद्धात, पूर्वाग्रह, और तरह-तरह की नासमझियां। तुम्हें उसे स्वयं खोज लेना है जो स्वाभाविक है। अभी कुछ दिन पहले एक युवक आया मेरे पास। वह पूछने लगा, 'क्या मेरे लिए विवाह कर लेना ठीक है? क्योंकि मेरी आध्यात्मिक प्रवृत्ति है, मैं विवाह नहीं करना चाहता।' मैंने पूछा उससे, 'क्या तुमने विवेकानंद को पढ़ा है? वह बोला, 'ही, विवेकानंद तो मेरे गुरु हैं।' तब मैंने पूछा उससे, 'दूसरी और कौनसी किताबें तुम पढ़ते रहे हो!' वह बोला, 'शिवानंद, विवेकानंद और दूसरे कई शिक्षकों को।' मैंने पूछा उससे, 'विवाह न करने का विचार तुम्हारा है या विवेकानंद और शिवानंद आदि का है? यह यदि म्हारा है तो बिलकल ठीक है यह।' वह बोला, 'नहीं, क्योंकि मेरा मन कामवासना के बारे में सोचता ही रहता है, पर विवेकानंद ही ठीक होंगे कि कामवासना से लडना ही चाहिए। वरना कैसे सधरेगा कोई ही चाहिए। वरना कैसे सुधरेगा कोई? व्यक्ति को आध्यात्मिकता उपलब्ध करनी है।' यही है अड़चन। अब यह विवेकानंद दूध में मिले हुए पानी हैं। विवेकानंद के लिए ठीक रहा होगा ब्रह्मचारी रहना; यह है उनके अपने निर्णय की बात। लेकिन यदि वे प्रभावित थे बदध से, रामकृष्ण से, तो वै भी अस्वाभाविक हुए, अशुद्ध हुए। अपने अंतस का और स्वभाव का अनुसरण करना होता है, और रहना होता है बहुत सच्चा और प्रामाणिक। क्योंकि जाल बहुत बड़ा है और गड्डे लाखों हैं। सड़क बंट जाती है बहत सारे आयामों में और दिशाओं में। तुम खो सकते हो। तुम्हारा मन सोचता है कामवासना की, विवेकानंद का शिक्षण कहता है, 'नहीं।' तब तुम्हें निर्णय लेना होता है। तुम्हें चलना पड़ता है तुम्हारे मन के अनुसार। मैंने कहां उस युवक से, 'बेहतर है कि तुम विवाह कर लो।' तब मैंने एक कथा कही उससे। जितने सर्वाधिक पीड़ित पति हुए उनमें से एक था सुकरात। उसकी पत्नी जेनथिपे बहुत खतरनाक स्त्रियों में से एक थी। स्त्रियां खतरनाक होती हैं लेकिन वह तो सबसे ज्यादा खतरनाक स्त्री थी। वह पीटती थी सुकरात को। एक बार तो उसने सारी चायदानी उंडेल दी उसके सिर पर। उसका आधा चेहरा जला हुआ ही रहा जीवन भर। ऐसे आदमी से पूछना कि क्या करें! पूछा था एक युवक ने, 'मुझे विवाह करना चाहिए या नहीं?' निस्संदेह, वह आशा रखता था कि सुकरात कहेगा, 'नहीं'–उसने बहुत दुख पाया था इस कारण। लेकिन वह तो बोला, 'ही, तुम्हें कर लेना चाहिए विवाह।' युवक कहने लगा, 'लेकिन ऐसा कैसे कह सकते हैं आप? मैंने तो बहुत सारी अफवाहें सुनी हैं आपके बारे में और आपकी पत्नी के बारे में।' वह बोला, 'हां, मैं तो कहता हूं तुमसे कि तुम्हें विवाह कर लेना चाहिए। यदि तुम्हें
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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