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________________ मैंने पूछा उससे, 'क्यों तुम इतने बेचैन हो? तुम तो ठीक से बैठ भी नहीं सकते। क्यों तुम जगह बदलते जाते हो?' वह बोला, 'पिछली रात मैं ठीक से सो नहीं सका'-फिर भी वही बुदधिसंगत व्याख्या। आदमी को किसी न किसी तरह कारण खोज ही लेने होते हैं। वरना तो आदमी पागल जान पड़ेगा। तो नौ बजने के कोई पाच मिनट पहले वह बोला, 'बहुत गर्मी है यहां।' गरमी थी नहीं क्योंकि वह सुबह की सैर के लिए निकला था और सर्दी का मौसम गर्मी है यहां। क्या हम भीतर नहीं जा सकते?' फिर वही ठीक कारण खोजने का बहाना। मैंने टालना चाहा इस बात को और मैंने कहां, 'गरमी नहीं है।' तब वह अचानक उठ खड़ा हुआ। नौ बजने में बस दो मिनट ही बाकी थे। उसने देखा अपनी घड़ी की ओर, खड़ा हो गया, और वह बोला, 'मैं बीमार अनुभव कर रहा हूं।' इससे पहले कि मैं रोक सकता, वह तो भाग। कमरे की ओर। मैं उसके पीछे आया। वह कूद पड़ा बिस्तर पर, उसने तकिए को चूमा, आलिंगन किया तकिए का- और मैं खड़ा था वहां पर, जिससे उसने बहुत परेशानी, उलझन अनुभव की। मैंने पूछा, 'क्या कर रहे हो तुम?' उसने रोना शुरू कर दिया। वह बोला, 'मुझे नहीं मालूम, पर कल जब आपसे अलग हुआ तब से यह तकिया लगातार मेरे मन में बना रहा है! वह नहीं जानता था कि सम्मोहन में मैंने ही वैसा करने को कहां था। और वह बोला, 'रात में भी मैं फिर-फिर स्वप्न देखता था, इसी तकिए को आलिंगन करता, अता और यह एक जरूरत बन गई, एक मोह हो गया। सारी रात मैं सो नहीं सका। अब मुझे चैन पड़ा है, पर मैं जानता नहीं क्यों?' क्या तुम्हारा सारा जीवन इसी भांति नहीं है? हो सकता है तुम किसी तकिए को नहीं चूम रहे हो, तुम किसी स्त्री को चूम रहे होओगे, लेकिन क्या तुम्हें इसका कारण पता है? उाचानक एक स्त्री या एक पुरुष तुम्हें आकर्षक लगते हैं, लेकिन तुम्हें कारण पता नहीं कि क्यों! यह किसी सम्मोहन की भाति ही है। निस्संदेह ऐसा प्राकृतिक है, किसी ने तुम्हें सम्मोहित नहीं किया है, प्रकृति ने ही तुम्हें सम्मोहित किया है। प्रकृति की सम्मोहित करने की शक्ति ही है जिसे कि हिंदू कहते हैं 'माया', भ्रम की शक्ति। तुम भ्रम में होते हो, गहरी भ्रामकता में होते हो। तुम जीते हो निद्राचारी की भांति, गहरी नींद में सोए हुए तुम बातें करते चले जाते हो न जानते हुए कि क्यों; और जो कुछ कारण तुम बताते हो, वे बुद्धि के हिसाब ही होते हैं, वे सच्चे कारण नहीं होते। तुम एक स्त्री से मिलते, तुम प्रेम में पड़ जाते, और तुम कहते, 'मुझे प्रेम हो गया है। लेकिन क्या तुम कारण बता सकते हो कि क्यों? क्यों हुआ है ऐसा? तुम खोज लोगे कुछ कारण। तुम कहोगे, 'उसकी आंखें इतनी सुंदर हैं। नाक इतनी सुघड़ है, और चेहरा है संगमरमर की प्रतिमा की भांति!' तुम खोज लोगे कारण, लेकिन ये तो बुद्धि के तर्क हैं। वस्तुत: तुम जानते नहीं, और तुम इतने साहसी नहीं कि कह सको कि तुम जानते नहीं। साहसी बनी। जब तुम नहीं जानते, तो तुम्हें बोध होना चाहिए कि तुम नहीं जानते। वह एक आघातकारी बात होगी। तुम इस सारे भ्रम से बाहर आ सकते हो जो तुम्हें घेरे
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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