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________________ कैसे तुम अपने अस्तित्व के एक हिस्से को जीत सकते हो दूसरे हिस्से द्वारा? ये मात्र झूठे दावे हैं। यदि तुम दबाते हो कामवासना को, तो ब्रह्मचर्य होगा एक मिथ्याभिमान, एक पाखंड। यह तो बस वैसा ही हुआ कि दायां हाथ वहां पड़ा है और प्रतीक्षा कर रहा है, दिखावा करने में तुम्हें मदद दे रहा है। किसी क्षण फिर उलट सकती है हर चीज। और स्थिति उलटेगी ही। वह जिसे तुमने जीत लिया हो उसे जीतना होता है फिर-फिर, क्योंकि वह हरगिज वास्तविक जीत नहीं होती। अंत में तुम पाओगे कि तुम लड़ते रहे हो अपने सारे जीवन भर और कुछ प्राप्त नहीं हुआ है। वस्तुत: तुम केवल पराजित ही होओगे और कुछ नहीं। तुम्हारा संपूर्ण जीवन पराजित होगा। जो गुरु जानता है, गुरु जो संबोधि को उपलब्ध होता है वह कभी नहीं उपदेश देता रहा दमन का। लेकिन उनकी उपदेशना रही है, कुछ ऐसी, जो दमन लग सकती है उन लोगों को जो नहीं जानते, इसलिए भेद साफ करने दो मुझे। भेद बहुत सूक्ष्म है। उदाहरण के लिए, बुद्ध और महावीर दोनों ने सिखाया है उपवास करना, दोनों ने सिखाया है ब्रह्मचर्य। क्या वे सिखा रहे हैं दमन? वे सिखा नहीं सकते, और वे नहीं सिखा रहे थे ऐसा। जब बुद्ध कहते हैं, 'उपवास करो' तो क्या अर्थ होता है उनका? तुम्हारी भूख को दबाओं? –नहीं। वे कहते हैं, 'देखो अपनी भूख को। 'शरीर कहेगा, 'मैं भूखा हूं?' तुम सिर्फ बैठना अपने भीतर और देखना। कुछ मत करना शरीर को पोषित करने के लिए और न ही कुछ करना भूख को दबाने के लिए। तुम तो सिर्फ देखना भूख को। किसी क्रिया की कोई जरूरत नहीं तुम्हारी तरफ से, और दमन एक क्रिया ही है। जबकि तुम भूख को दमन करो, तो क्या करोगे तुम? तुम उसे देख नहीं पाओगे। वस्तुत:, केवल वही बात होती है जिससे तुम बचोगे। क्या करेगा वह व्यक्ति जो भूख दबा देना चाहता है और जिसने कि उपवास रखा है, जैसे कि जैन करते हैं हर साल? वह कोशिश करेगा मन को कहीं दूसरी जगह बहलाने की ताकि भूख का अनुभव ही न हो। वह जप करेगा मंत्रों का, या वह चला जाएगा अपने धर्म-नेता के पास उसे सुनने ताकि मन उलझा रहे। -तब उसे कोई जरूरत नहीं रहती उस भूख पर ध्यान देने की जो कि उसमें होती है। यह दमन है। दमन का अर्थ है : कुछ मौजूद है और उसकी ओर तुम देखते नहीं, तुम दिखावा करते हो कि वह नहीं है वहां। यदि तुम गहरे रूप से व्यस्त होते हो मन में, तो भूख नहीं बेध सकती और अपनी ओर नहीं ला सकती तुम्हारा ध्यान। भूख खटखटाती रहेगी द्वार, लेकिन तुम मंत्र का जप कर रहे होते हो इतनी जोर से कि तुम खटखटाहट सुनते ही नहीं। दमन का मतलब है : अपने भीतर की वास्तविकता से अलग करके मन को कहीं दूसरी ओर लगा देना। यदि तुमने प्रतिज्ञा की है ब्रह्मचर्य की या तुमने ब्रह्मचारी का जीवन धारण कर लिया है, तो क्या करोगे तुम जब कामेच्छा उठेगी और कोई सुंदर स्त्री पास से गुजर जाएगी तो? क्या तुम शुरू कर दोगे मंत्र का जप-राम, राम, राम? तो तुम अब कर रहे हो बचाव। तुम एक परदा डाल रहे हो तुम्हारी आंखों
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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